

मान मनौअल में जुटी भाजपा तो कांग्रेस अब भी बिखरी…
इन्ट्रो-उन्नीसवीं लोकसभा के लिए होने वाले आम चनाव में शहडोल लोकसभा अपने आप में एक इतिहास लिखेगी, क्योंकि भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशी दोनों दल-बदल कर मैदान में हैं और यही कारण है कि वह अपनों से घिरी हैं। प्रत्याशी जहां अपने तरीके से वरिष्ठ नेताओं को मनाने की कवायद कर चुकी हैं, तो संगठन में भाजपा इस मामले में आगे दिखाई दे रही है, तो कांग्रेस अब भी बिखरी पड़ी है।
शहडोल।
मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में शहडोल लोकसभा सीट भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल के लिए साख की हो गई है। क्योंकि दोनों ही दल को अपने जमीनी नेताओं पर भरोसा नहीं रहा। तभी तो चंद समय में दल बदलकर एक-दूसरी पार्टी का दामन थामने वाली नेत्रियों पर दोनों ने भरोसा जताया है और यह शायद शहडोल लोकसभा सीट के इतिहास में पहला अवसर होगा जब सांसद के चुनाव मैदान में दो नेत्रियां आमने-सामने हैं। ऐसे में दोनों दल के शीर्ष नेतृत्व अपने जमीनी कार्यकर्ताओं व दिग्गज नेताओं को कैसे एकजुट कर पायेगा, यह बड़ा सवाल राजनैतिक विश्लेषकों व बुद्धजीवियों के मन में बना हुआ है, क्योंकि जो चंद माह तक एक-दूसरे पर लंबे समय से जुबानी तीर ताने रहे, अब उनके लिए मतदाताओं वह किस प्रकार रिझायेंगे। स्पष्ट है कि यहां प्रत्याशी की कार्यकुशलता नहीं, बल्कि देश और प्रदेश के नेताओं का नाम लेकर उनके पक्ष में मतदान की अपील की जाएगी।

तो पुष्पराजगढ़ से कांग्रेस ने फेरा मुंह
1999 के लोकसभा चुनाव के बाद 2019 का लोकसभा चुनाव यहां के मतदाताओं को याद रहेगा। खासतौर से कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों के लिए यह सोचने का विषय बन गया है। क्योंकि 1999 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने पुष्पराजगढ़ विधानसभा से दलबीर सिंह का टिकट काटते हुए अजीत जोगी को मैदान में उतारा। उसके बाद 2019 का चुनाव है जब पुष्पराजगढ़ को छोड़कर कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी तय किया है। पुष्पराजगढ़ क्षेत्र में यह बात आम मतदाता की जुबान पर है कि कांग्रेस ने पुष्पराजगढ़ से मुंह फेर लिया। यह कितना सही है या गलत यह तो समय बतायेगा।
क्या मान पायेंगे रूठे हुए
दोनों ही दलों के कई वरिष्ठ नेता रूठे हुए हैं। जिन्होंने नामांकन के पहले ही अपनी नाराजगी खुलकर दिखा दी है। क्या उन्हें शीर्ष नेतृत्व मना पायेगा और वह उसी मनोयोग से जिस मनायोग से पहले पार्टी की जीत के लिए डटे रहते थे चलेंगे यह भी एक बड़ा प्रश्न दोनों दलों के सामने है। क्योंकि वरिष्ठों की नाराजगी कहीं भी कभी भी भारी पड़ सकती है। इसीलिए दोनों दलों के प्रत्याशी भी नपी-तुली भाषा में एक-दूसरे के विरोध में बोल रहे हैं। ना जाने कौन किस दल में उनका अपना है जो उनके लिए कार्य कर रहा है और उनके बोल से उसे ठेस पहुंच जाये और अंत में नुकसान हो जाये।
अनूपपुर में सबकी निगाहें
कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही दलों के शीर्ष नेताओं की निगाहें अनूपपुर जिले की तीनों विधानसभाओं में है। कांग्रेस नेताओं की निगाहें इसलिए यहां पर है कि तीनों ही विधानसभा में उसके विधायक है, तो स्वाभाविक है समर्थकों की संख्या बढ़ी होगी। वहीं भाजपा तीनों विधानसभा से हारी है इसलिए उसका शीर्ष नेतृत्व इस लोकसभा चुनाव में यह जानने की कोशिश करेगा कि आखिर कौन सी विधानसभा में उसने क्या गलती की है। इसके साथ ही प्रत्येक विधानसभा में मतदान का प्रतिशत बढ़ाने की भी चुनौती भाजपा के सामने है।
आज के बाद जोर पकड़ेगा प्रचार
शुक्रवार को नाम स्क्रूटनी की प्रक्रिया पूर्ण होने व चुनाव चिन्ह आवंटन के बाद प्रचार-प्रसार जोर पकड़ेगा। जो लगातार 27 अपैल की शाम तक चलेगा। उसके बाद 24 घंटे तक अपनी-अपनी पार्टी के लिए कार्यकर्ता, नेता, प्रत्याशी मतदान की अपील करेंगे। इस बीच प्रचार के लिए क्या-क्या माध्यम किसके द्वारा अपनाये जाते हैं और कौन किन कितना मतदाताओं को रिझाने में सफल होता है दिखाई देगा। निर्वाचन आयोग की शक्ति को देखते हुए इस बार प्रचार का शोरगुल भी उस प्रकार नहीं होगा, जो पहले होता था। क्षेत्र बड़ा है और प्रचार का समय कम ऐसे में कौन कहां कितनी बार हाजिरी लगा पाता है। यह भी महत्वपूर्ण होगा।
