

एक बूंद पानी की कीमत तुम क्या जानो ?..
बिन पानी सब सून…..
इंट्रो- रहिमन पानी राखिये ……. बिन पानी सब सून। बहुत पहले लिखी गई इन पंक्तियों का यथार्थ अनूपपुर जिले के चौरादादर नांमक गांव मे देखने को मिलती है। जहां पानी की जद्दो जहद मे दिन गुजरता है। महज 15 ली. पानी के लिये 3 किमी के पहाड़ के साथ दो किमी का मैदानी सफर तय करना रहवासियों की पैदाईसी दिनचर्या है।

अनूपपुर। जिले के पुष्पराजगढ़ तहसील अंतर्गत आने वाले पड़री बकान ग्राम पंचायत का चैरादादर ग्राम जहां तकरीबन 80 परिवार निवासरत है। इन ग्रामीणों को पानी के लिये रोजाना 10 किमी का सफर आज भी तय करना पड़ता है। विकास के तमाम दावे यहां दम तोड़ चुके हैै। कहने को ओडीएफ घोषित जिले का यह गांव जहां आधे अधूरे कुछ शौचालय भी स्वच्छता अभियान के तहत बनाये गये है। लेकिन जहां पीने का पानी भी 5 किमी दूरी से लाना पड़ता हो वहां बनाये गये शौचालयों की उपयोगिता कितनी होगी सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
इंसानी घोड़ो से पहुंचता है पानी
चौरादादर ग्राम मे पानी की विकराल समस्या आज भी मुंह बाये खड़ी है। यहां के ग्रामीण अपनी जरुरत का पानी 5 किमी दूर बकान नांमक गांव के तालाब से पूरा करते है। इसके लिये ग्रामीणो को 3 किमी. दुर्गम पहाडी़ रास्ते पर चलना होता है। ऐसा ये ग्रामीण दिन मे दो बार करते है। तब कही इनके घरों तक पानी पहुंच पाता है। इस कार्य मे बच्चे, बड़े, महिलाये और बुजुर्ग शामिल रहते है। यहां निवासरत ग्रामीण परिवारों के कुछ सदस्य की तो महज पानी लाना ही दिनचर्या बनकर रह गई है। पानी से भरे बर्तन लेकर पहाड़ चढ़ने मे कुछ परिवारों के पास पालतू घोड़े भी मदद करते दिखाई देते है। जिनके पास घोड़े नही है, वे खुद पानी का बजन घोड़ो की तरह उठाये घरो तक पहुंचते है। ताकि पानी जैसी मूलभूत सुविधा उनके घरों तक पहुंचे।
गांव की भौगोलिक संरचना व ग्रामीणों की दिनचर्या
पड़री ग्राम पंचायत अतर्गत आने वाला चौरादादर गांव एक टापू नुमा पहाड़ पर स्थित है। यहां अधिकांश गोंड़ जनजाति के लोग निवास करते है। ये ग्रामीण बचपन से ही पानी की जद्दो जहद मे अपना जीवन यापन करते रहे है। कारण पानी के प्राकृतिक स्रोत झरने, झिरिया, कुंआ आदि दिसंबर जनवरी माह मे सूख जाते है। तब से लेकर आगामी बरसात तक इन्हे 5 किमी दूर ग्राम बकान के तालाब पर निर्भर रहना होता है। बकान तालाब का पहुंच मार्ग बेहद दुर्गम, पथरीला और पहाड़ी है। जंगली जानवरों का भय भी ग्रामीणों को बना रहता है। यहां से पानी ले जाने के लिये ग्रामीणों को सुबह और शाम दोनो वक्त जाना होता है। दोपहर की चिलचिलाती धूप पर पानी लेकर चढ़ना आसान नही होता। परिवार का एक व्यक्ति पूरी गर्मी सिर्फ पानी की व्यवस्था मे ही गुजार देता है।
अब तक की गई प्रशासनिक व्यवस्था
यहां जल संसाधन विभाग द्वारा तीन हैण्डपंप विगत अलग अलग वर्षो मे लगवाये गये है। किन्तु गुणवत्ताहीन इन बोरवेल से पानी नही आता साथ ही प्रशासन द्वारा पहले उर्जा चलित बोरवेल स्थापित किया गया था। जो बेहतर देखभाल के आभाव मे बंद पड़ा हुआ है। उक्त बोरवेल मे स्तेमाल की गई सामग्री भी चोरो ने पार कर दी है। ग्रामीणों के बताये अनुसार इस उर्जा चलित बोरवेल मे पर्याप्त पानी उपलब्ध है किन्तु अब इससे पानी नही लिया जा सकता। दो वर्ष पूर्व पंचायत द्वारा आधे पहाड़ तक टैंकर के माध्यम से पानी पहुंचाया जाता रहा है। वह भी अब भुगतान न होना बताकर बंद कर दिया गया है। इन समस्याओं को जनम जात मानकर यहां के ग्रामीण आदिवासी अपना नरकीय जीवन जीने को मजबूर है।
नेताओ के चुनावी वादे और पूर्व मे फैली हैजा की बीमारी
विगत दो वर्ष पूर्व चौरादादर समेत पड़री, बकान, नगुला, विचारपुर मे हैजे की बीमारी फैली थी। तब चैरादादर के 17 लोग इस बीमारी के चपेट मे आ गये थे। दो व्यक्तियों की उस समय फैले हैजे से मौत भी हो चुकी थी। हैजे फैलने का कारण पीने के लिये गंदे पानी का उपयोग किया जाना तात्कालीन समय पर डाॅक्टरों द्वारा बताया गया था। तब हरकत मे आया जल संसाधन विभाग कुछ दवाईयां बांटकर अपने कर्तव्यों को पूरा कर लिया था। इधर चुनावी समय आते ही स्थानीय नेता ग्रामीणों से रुबरु होने पहुंचते है। चुनाव परिणाम आते ही अगले चुनाव तक इन्हे देख पाना ग्रामीणों के लिये कोरी कल्पना जैसा होता है। यह बात चौरादादर के ग्रामीणों ने कही है। उनके बताये अनुसार जिला से की गई शिकायतों का भी असर आज तक देखने को नही मिला।
