

जगदलपुर,
छह साल पहले जिस झीरम घाटी में कांग्रेस के प्रथम पंक्ति के नेताओं, कई जवानों और आम आदमियों की नक्सलियों ने निर्ममता से हत्या कर दी थी, वहां आज भी आम आदमी से लेकर अधिकारी तक पहुंचते हैं परंतु घाटी में बसे झीरम गांव के लोगों की सुध लेने कोई नहीं पहुंचा। अधिकारी झीरम घाटी में शांति तथा बस्ती में विकास का दावा करते हैं परंतु हकीकत यह है कि वहां के लोग छह साल से दहशत में हैं और विकास उनसे कोसों दूर है। आज भी झीरम के ग्रामीण झरन का पानी पीने मजबूर हैं।
संभाग मुख्यालय से 50 किमी दूर बस्तर का एक ऐसा गांव जिसका नाम सुनते ही लोग कांप जाते हैं। इसका नाम है झीरम। 25 मई 2013 को नक्सलियों ने वहां कांग्रेस के काफिले पर बड़ा हमला किया था। इस हमले में कांग्रेस के बड़े नेता सहित कुल 31 लोगों की हत्या हो गई थी। इस हमले के बाद गांव में नेता और अधिकारियों ने विकास की बात कही थी। जनप्रतिनिधियों पर हुए देश के सबसे बड़े हमले ने झीरम गांव की अलग पहचान बनाई है।

पिछली सरकार ने यहां विकास के सिर्फ वादे किए परंतु हकीकत यह है कि झीरम घाटी को पार कर विकास गांव तक पहुंचा ही नहीं। इधर झीरम में हुए वीभत्स नरसंहार के लिए झीरम के ग्रामीण आज भी आत्मग्लानि में जीते हैं। चूंकि इन पर भी नक्सलियों का साथ देने का आरोप लगा था। यहां के फूल सिंह कश्यप, जगत कश्यप, झगरूराम, श्यामबती, सविता आदि बताते हैं कि अधिकांश नेता दहशत के मारे झीरम तक नहीं आते और विकास की बातें करते हैं। उनका गांव आज भी विकास के लिए तरस रहा है।
नई सरकार से उम्मीद
सहम जाते हैं यात्री
