
इस चोरी के हम सब जिम्मेदार – मजिस्ट्रेट के घर रोटी की चोरी (चुभती बात – मनोज कुमार द्विवेदी, अनूपपुर, मप्र )

अनूपपुर / सीधी की इस टेढी खबर को पढने के बाद मन सुबह से ही क्षुब्ध है। घने जंगल में जाकर पेडों के बीच खूब जोर जोर से चिल्लाने — रोने का मन कर रहा है। लेकिन सभ्यता , संस्कार, बडप्पन का फर्जी आवरण यह सब करने से रोक रहा है। यदि ये तीन शब्द हमारी जिन्दगी में ना होते तो अवसर पाते ही हम बार बार बच्चे बन कर बचपना ना कर लेते ?
सीधी जिले में पदस्थ मजिस्ट्रेट के सरकारी आवास में गुरुवार की रात भूख की चोरी हो गयी। एक की भूख से पांच रोटियां अधिक थीं….तो दूसरे के हिस्से में इन पांच रोटियों की इतनी जबर्दस्त भूख थी कि उसने न्याय देने वाले मजिस्ट्रेट के घर में ही चोरी करने का दुस्साहस कर लिया। वो भूखा था इसलिये चोर बना या वो चोर था …इसलिये स्वभावत: भूखा था, यह स्पष्ट नहीं है ….क्योंकि पुलिस उस भूखे की तलाश मे भूख – प्यास छिनाए बैठी है।
कोरोना के कारण लाकडाऊन से बहुत लोगों की भूख प्यास पर असर पडा है। कोई है कि बस दिनभर घर पर बैठा खाए ही जा रहा है…तो दूसरा एक वर्ग ऐसा है जो भूख के कारण अपनी जान दांव पर लगाए हुए है। कमबख्त भूख है कि सत्तर साल से पीछा ही नहीं छोड़ रही।
जिस देश में एक व्यक्ति को भी खाने के लिये रोटी चुराना पडे…उस देश की सत्तर साल की आजादी पर बहुत से सवाल हैं।
जाहिरा पहला सवाल सरकार पर है तो गरीबी हटाने वाली नीतियों पर भी। गरीबी…गरीब….गरीबी हटाओ पर इतने चुनाव लडे गये ….जितने मे सच्ची नीयत से गरीबी का नामो निशान तक नहीं होता।
शहडोल के एक पूर्व दिवंगत सांसद स्व दलपत सिंह ने दूरदर्शन के अजीत मिश्रा से कैमरे पर चर्चा करते हुए कहा था कि कोई सरकार नही चाहती कि हम आत्मनिर्भर बनें। पांच लीटर मुफ्त शराब की कट्टी पकडा कर हमें दॊडने को कहा जाता है। गरीबी कैसे हटे….जहालत कैसे मिटे….आत्मनिर्भरता कैसे आए ?
बहरहाल लाकडाऊन की बेरोजगारी सब पर भारी पडने जा रही है। ट्रेनों से घरों की ओर लौट रहे यात्रियों की जबलपुर, व्यॊहारी सहित बहुत से स्टेशनों मे की जा रही लूट को क्या कहेंगे?
वो ना तो राजघरानों की अरबों – खबरों की संपत्ति लूट कर विदेश जा रहे हैं…ना ही रातों रात अमीर बनने की सनक है। वो अपराधी नहीं हैं….भूख प्यास से पीडित यदि खाने पीने की वस्तुओं की लूट करे तो दोष उस देश के सिस्टम का है। हम फेल हुए …हम सब फेल हो गये। क्या मीडिया…क्या बाबू…क्या मंत्री …क्या मजिस्ट्रेट !!!!
मन कर रहा है कि मजिस्ट्रेट साहब से कहूं कि वो भूखा पकडा जाए …रोटी की चोरी सिद्ध भी हो जाए तो उसे सजा मत देना। लेकिन यह न्याय क्षेत्र में बेजा दखल होगा । मैं कहना चाहता हूं दरोगा साहब से कि अपने क्षेत्र के हर उस जिम्मेदार की थाने में परेड कराए जिसके घर उसकी भूख से अधिक रोटियां बनती तो हैं…लेकिन भूखे को खिलाने का मानवीय कर्तव्य पूरा नहीं करता। मुझे चिल्ला चिल्ला कर कहने की इच्छा है अपने पत्रकार भाईयों से कि तुम्हारी भी कमाई बन्द है…उस भूखे की आमदनी का जरिया नहीं रहा ….तो तुमने उसकी भूख को क्यों नहीं पहचाना ?
देश को लाकडाऊन के बाद बेरोजगारी, पलायन, भुखमरी पर होने वाली राजनीति को बन्द करना होगा। सच्चे असहाय गरीबों को एक रुपये – दो रुपये किलो नहीं …बिल्कुल मुफ्त महीने – महीने भर का मुफ्त राशन दो ….लेकिन उसे आठ घंटे की काम करने की बाध्यता जरुर हो। बिना काम , मुफ्त का राशन मानवीय संवेदना का नहीं…लोगों को निकम्मा बनाने जैसा गंभीर अपराध है। पलायन ! जिसके कारण दुनिया में भारत को शर्मसार होना पड रहा है…उसे रोकने के लिये एक देश – एक मजदूरी, समान कार्य – समान वेतन की योजना पर कार्य करना होगा।
पुलिस की जांच में खुलाशा होगा कि यदि भूखा था ,तो उसने किससे राशन की गोहार लगाई। प्रत्येक गरीब को चार माह का राशन , उज्ज्वला का तीन गैस सिलेंडर मिला या नहीं मिला ? पुलिस तह तक जाएगी तो ही पता चलेगा कि वह भूखा था या चोर था। इतने सालों में यदि भूख के नाम पर भी लोग दिन दहाडे स्टेशनों पर किसी की रोजीरोटी, किसी की रेहडी, किसी की दुकान लूट रहे हैं …तो यह ईमानदार, मेहनकश लोगों की कमाई की लूट है। हर मामले में सहानुभूति, सहयोग, संवेदना दिखलाने का कहीं यह बैक फायर तो नहीं ।
समय रहते जिम्मेदार लोग तय करें कि देश को जिम्मेदारी की ओर ले जाना है या पुराने ढर्रे की अराजक व्यवस्था पर। जहाँ बेरोजगारी, भूख ,अधिकार के नाम पर कर्तव्यहीनता की तालीम देकर अपने ही देश , अपने ही लोगों के विरुद्ध हथियार थमा कर हिंसा के लिये उकसाया जाता रहा है।
