Thursday, October 17, 2024

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अतीक से उमेश की दुश्मनी, फिर हत्या तक की कहानी:2006 में अपहरण, एक साल बाद मायावती की सरकार बनी तो कराई FIR; राजू पाल जैसे हुआ मर्डर

माफिया अतीक अहमद और उमेश पाल के बीच दुश्मनी 18 साल पुरानी है। इसकी शुरुआत 25 जनवरी, 2005 में बसपा विधायक राजू पाल के मर्डर के साथ हुई। उमेश पाल मर्डर उस केस का चश्मदीद गवाह था। अतीक अहमद ने उमेश पाल को कई बार फोन कर बयान न देने और केस से हटने को कहा। ऐसा न करने पर जान से मारने की धमकी दी।

उमेश पाल नहीं माना, तो 28 फरवरी, 2006 को उसका अपहरण करा लिया। उमेश पाल ने करीब डेढ़ साल बाद 5 जुलाई, 2007 में अतीक और उसके भाई अशरफ समेत 10 के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी। यहीं से उमेश पाल अतीक की आंख की किरकिरी बन गया।

उमेश पाल अपहरण केस में अतीक अहमद और उसका भाई अशरफ मुख्य आरोपी हैं।

मायावती ने दी हिम्मत और भरोसा, तब एक साल बाद दर्ज कराई रिपोर्ट
अतीक अहमद ने उमेश पाल काे अपहरण के बाद अपने चकिया के ऑफिस में रखा था। उसे रातभर पीटा और टॉर्चर किया। इससे वह घबरा गया। उसे बिजली के शॉक भी दिए गए। अपनी आंख के सामने मौत का मंजर देखकर उमेश पाल टूट गया।

इसके बाद उसने डर के मारे अगले दिन कोर्ट में अतीक के पक्ष में गवाही दे दी। हलफनामा भी दे दिया। लिखा कि उमेश पाल मर्डर के समय वह वहां मौजूद नहीं था और न ही कुछ वह जानता है।

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद अतीक के आंख की किरकिरी बन गया उमेश
2005 में सपा की सरकार थी। अतीक अहमद उस समय सांसद था। उसके रसूख और डर के मारे उमेश पाल थाने ही नहीं गया। ठीक एक साल बाद 2007 में सरकार बदली। सपा को हार मिली। बसपा प्रमुख मायावती मुख्यमंत्री बनीं।

मायावती अपने विधायक राजू पाल की हत्या से काफी नाराज थीं। अतीक अहमद के ऊपर बसपा की सरकार बनते ही कार्रवाई शुरू हो गई। मायावती ने अतीक के दफ्तर पर बुलडोजर चलवा दिया। बताया जाता है कि मायावती ने उमेश पाल को लखनऊ बुलवाया। हिम्मत दी, ”तुम गवाही दो, तुम्हारी सुरक्षा सरकार करेगी।”

इसके बाद उमेश पाल हिम्मत जुटाकर 5 जुलाई, 2007 में अतीक, उसके भाई अशरफ सहित 10 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। इसी अपहरण केस के बाद उमेश पाल अतीक अहमद के निशाने पर आ गए। बीच-बीच में भी धमकी मिलती रही। भरी कचहरी उमेश पाल पर हमला हुआ, पर वह डरे नहीं। हिम्मत से आगे बढ़ते रहे।

उमेश पाल को पूरा भरोसा था कि योगी सरकार में उसका कुछ कोई नहीं बिगाड़ सकता। यही ओवर कॉन्फिडेंस उसे ले डूबा। 24 फरवरी को उमेश पाल की शूटर्स ने गोली और बम मारकर हत्या कर दी। इसमें उमेश की सुरक्षा में लगे दो सरकारी गनर संदीप निषाद और राघवेंद्र की भी मौत हो गई।

2004 में पहली बार लड़ी सांसदी और जीत गए
सपा ने अतीक अहमद को 2004 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर से एक बार फिर लड़ने का मौका दिया। अतीक अहमद ने धनबल और बाहुबल से फूलपुर का चुनाव जीत लिया। उसने बहुजन समाज पार्टी की केसरी देवी पटेल को 64,347 मतों से करारी शिकस्त देकर साबित कर दिया कि हाल-फिलहाल अतीक अहमद का सितारा बुलंद रहेगा। सांसद बनने के बाद अतीक का रसूख बढ़ता चला गया। अतीक के नाम पर उनके गुर्गों ने शहर पश्चिमी में तमाम जमीनों पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया। रंगदारी, वसूली का खेल खेला जाने लगा।

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