28 फरवरी 2006 की वो रात बीतने का नाम नहीं ले रही थी। पति उमेश पाल उस रात घर नहीं आए थे। मेरी निगाह रातभर घर की चौखट पर ही लगी रही। हर आहट पर यही लगता कि शायद पति आ गए। तमाम तरह की शंका-आशंका से मन घबरा रहा था। अगले दिन भी शाम हो गई तो चिंता और बढ़ गई। एक मार्च 2006 की शाम ढल चुकी थी। अचानक से उमेश ने मुझे आवाज दी। गुड़िया (प्यार से जया को बुलाते थे) चाय बनाओ। उनके कपड़े गंदे थे। हाल बुरा था। कई जगह चोट के निशान थे। मेरा कलेजा हक से हो गया। पूछा क्या हुआ? कहीं अतीक ने हमला तो नहीं करवा दिया? बोले-नहीं-नहीं गुड़िया ऐसा कुछ नहीं है। कल घर आते समय बाइक फिसल गई और चोट लग गई। रातभर अस्पताल में रहा।’उमेश ने कहा कि घबराओ मत गुड़िया, हम सब संभाल लेंगे। तुम परेशान मत हो। वो अतीक और अशरफ से डरते नहीं थे। शेर थे… बुजदिली से मेरे पति को मारा गया है। यह कहकर जया पाल रोने लगती हैं।
‘अतीक-अशरफ को फांसी हो या एनकाउंटर…इससे कम कुछ मंजूर नहीं’
जया पाल से जब यह पूछा गया कि आपके पति उमेश पाल के अपहरण केस का 28 मार्च को अंतिम फैसला आने वाला है, आप क्या कहेंगी? तो उनका जवाब था कि मेरे पति उमेश पाल की आत्मा को तभी शांति मिलेगी, जब अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को फांसी की सजा हो या कम से कम उसका एनकाउंटर हो। इससे कम कुछ भी मंजूर नहीं।
2006 में फिल्मी अंदाज में कराया था उमेश का अपहरण
माफिया अतीक अहमद और उमेश पाल के बीच अदावत 18 साल पुरानी है। इसकी शुरुआत 25 जनवरी 2005 को बसपा विधायक राजू पाल के मर्डर के साथ हुई। उमेश पाल राजू पाल मर्डर केस का चश्मदीद गवाह था। अतीक अहमद ने उमेश पाल को कई बार फोन कर बयान न देने और केस से हटने को कहा। ऐसा न करने पर जान से मारने की धमकी दी। उमेश पाल नहीं माना तो 28 फरवरी 2006 को फिल्मी अंदाज में उमेश पाल का अपहरण करा लिया। उसे रातभर मारा गया। बिजली के शॉक दिए गए। मन-माफिक गवाही देने के लिए टॉर्चर किया गया।
एक मार्च 2006 को अगले दिन उमेश पाल ने अतीक के पक्ष में गवाही दी। उस समय सपा की सरकार थी। उमेश अपने और परिवार की जान की रक्षा के लिए सालभर चुप रहा। 2007 में विधानसभा चुनाव हुए और सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। मायावती की नेतृत्व वाली बसपा की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी। इसके बाद अपने विधायक राजू पाल की हत्या से अतीक पर बिफरीं मायावती ने सबसे पहले अतीक अहमद का चकिया स्थित दफ्तर तोड़वा दिया। उमेश पाल को लखनऊ बुलवाया। हिम्मत दी। उमेश पाल ने एक साल बाद 5 जुलाई 2007 को अतीक अहमद, उसके भाई अशरफ समेत 10 के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई।
उमेश ने ठान लिया था अतीक के टॉर्चर का बदला लेंगे
उमेश पाल की तहरीर पर धूमनगंज थाने में बलवा, मारपीट, धमकी देना, गाली-गलौज करना, साजिश करना और 7 क्रिमिनल लॉ एमेंडमेंट एक्ट के तहत मामला दर्ज हुआ था। इस केस की 17 साल से उमेश पाल बिना डरे पैरवी कर रहे थे। उमेश पाल ने ठान लिया था कि अतीक अहमद और अशरफ ने जिस तरह उसको मारा-पीटा, उसका बदला सजा दिलवाकर लेंगे। यही कारण है कि उमेश पाल हर तारीख पर खुद मुकदमे की पैरवी के लिए जाते थे। कई बार उसे धमकी भी दी गई। हमला हुआ। केस वापस लेने को कहा गया, लेकिन उमेश बिना डरे पैरवी करते रहे। अब जबकि 28 मार्च 2023 को 17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद फैसला आ रहा था, उससे ठीक 31 दिन पहले उमेश पाल की दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड का आरोप भी अतीक, अशरफ समेत उसके पूरे कुनबे पर लगा है।