Thursday, November 21, 2024

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कैलाश खेर ने यूं तय किया ‘जंगल से जिंगल’ तक का सफर

कैलाश खेर का संगीत से प्यार जगजाहिर है। उन्होंने इस प्यार के लिए खूब पापड़ भी बेले हैं। सिंगर ने अपनी जर्नी उत्तर प्रदेश से शुरू की। इसके बाद उत्तराखंड दिल्ली से मुंबई तक पहुंचे। जहां उनके सपनों को पंख मिल गए और उन्होंने ऐसी उड़ान भरी कि एक बाद एक लगातार कई सुपरहिट गाने दिए।

कैलाश खेर अपनी अलग आवाज और बीट के लिए पहचाने जाते हैं। उनका सूफी अंदाज और दिल को छू लेने वाली खूबसूरत आवाज उन्हें सबसे अलग बनाती है। कैलाश खेर आज जिस मुकाम पर हैं, वहां, तक पहुंचने के लिए उन्होंने हर जतन किए है।

दिल्ली से ताल्लुक रखने वाले और उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर मेरठ में पले बढ़े कैलाश खेर का संघर्ष छोटी उम्र में ही शुरू हो गया था। 14 साल की उम्र में खुद को पाने की तलाश में कैलाश खेर अपने घर से भाग गए। इसके बाद वो सीधा ऋषिकेश के पहाड़ों में पहुंचे और आश्रमों को अपना घर बना लिया।

बिना किसी ट्रेनिंग आवाज में है जादू

कैलाश खेर ने इस हादसे के बाद पूरे एक दिन खुद को कमरे में बंद रखा। फिर बाहर निकले और गंगा आरती का हिस्सा बनना शुरू कर दिया। कैलाश खेल म्यूजिक की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है, लेकिन बचपन से उन्हें गाने का शौक था। कैलास 4 साल की छोटी उम्र से गाना गाते थे। फिल्मी गानों से उनका कोई लेना-देना नहीं था, सिंगर राधा और कृष्ण से जुड़े गाने गाते थे।

ऋषिकेश के जंगलों में मिली राह

कैलाश खेर ऐसा ही ऋषिकेश के आश्रमों में भी करते थे। गंगा के घाट पर रोजाना गंगा आरती होती है। जब महंत आरती की तैयारी करते थे तब कैलाश अपनी मस्त आवाज में गाना गुनगुनाते थे, जिसे सुनकर वहां मौजूद साधु-संत भी झूमने को मजबूर हो जाते थे।

जंगल से जिंगल तक का सफर

कैलाश खेर ने कई पॉपुलर ब्रांड के लिए जिंगल गाए, दिलचस्प बात तो ये थी कि शुरुआत में उन्हें जिंगल का मतलब भी नहीं पता था। कैलाश खेर कुछ इस तरह ऋषिकेश के जंगलों से निकलकर जिंगल मास्टर बनने तक का सफर तय किया।

कैसे मिला पहला गाना

कैलाश खेर के जिंगल मशहूर म्यूजिक कंपोजर विशाल- शेखर की जोड़ी तक पहुंची। हालांकि, उस वक्त वो भी स्ट्रगल कर रहे थे। दोनों ने सिर्फ एक फिल्म प्यार में कभी-कभी के लिए गाना तैयार किया था। इसके बाद विशाल-शेखर वैसा भी होता है कभी 2 के लिए म्यूजिक तैयार कर रहे थे। विशाल- शेखर गाना अल्लाह के बंदे के लिए सिंगर ढूंढ रहे थे और उनकी तलाश कैलाश खेर पर जाकर खत्म हुई।

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