2019 में नागरिकता विरोधी प्रदर्शनों के दौरान दिल्ली पुलिस को गुलाब देकर वायरल हुई डीयू की स्टडूेंट ने कभी सोचा नहीं था कि आगे चलकर वो अपने मजाकिया अंदाज से लोगों को हंसाने में कामयाब होगी। रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े किस्सों को लेकर आने वाली लड़की जब ईव टीजिंग पर तीखा व्यंग्य करते हुए स्टैंडअप कॉमेडी करती है, तो तालियों के साथ उसका इनबॉक्स भद्दे-भद्दे कमेंट्स से भी भर जाता है। कई बार लाइव शो में मजा कम आने की वजह से ऑडियंस की हूटिंग भी झेल चुकी है। इसके बावजूद स्टैंडअप कॉमेडी की दुनिया में अपनी एक पहचान बना ली है। आज के ‘ये मैं हूं’ में कॉमेडियन श्रेया प्रियम रॉय की कहानी…
18 साल की उम्र तक पटना से बाहर की दुनिया नहीं देखी
मेरा जन्म, पढ़ाई-लिखाई पटना में ही हुई है। मैं 18 साल तक बिहार के बाहर नहीं गई। बाहर जाने की कोई वजह भी नहीं थी। इस शहर से बाहर निकली भी तो एक-दो जगह जाना हुआ वो भी अपनी नानी के घर ही गई। लेकिन मैं सोचती जरूर थी कि मुझे अपना दायरा बढ़ाना है। मुझे दुनिया देखनी है। एक जगह बंधकर नहीं रहना है।
बड़े भाई के बगावती तेवर ने मेरी लाइफ आसान बना दी
मेरे घर में दादा-दादी, पापा-मम्मी और मेरे दो भाई हैं। मेरा बड़ा भाई बहुत बगावती मिजाज वाला रहा है। बड़े भाई ने बाहर जाकर पढ़ने और भी कई चीज को लेकर घर में विद्रोह किया, जिसकी वजह से जब मेरा टाइम आया तो मुझे बहुत दिक्कत नहीं हुई। जब बारहवीं के बाद मैंने बाहर जाने का फैसला किया तो पापा-मम्मी को इतना ताज्जुब नहीं हुआ। उन्होंने इस बात को समझा कि बच्चों का बाहर जाकर पढ़ना एक नॉर्मल सी बात है।
ग्रेजुएशन तक पता नहीं था कि करना क्या है
दसवीं में समझ आ गया था कि साइंस मेरे बस की बात नहीं है। बारहवीं की पढ़ाई के लिए कॉमर्स को चुना। लेकिन हर बिहारी पेरेंट्स की तरह मेरे घर वालों का सपना था कि मैं आईएएस बनूं। लेकिन सच बताऊं तो जो कुछ भी करने का सोचती थी, उससे जुड़ी मेहनत देखकर डर जाती। इन सबके बीच हिस्ट्री मुझे दिलचस्प लगी। बोर्ड में नंबर भी अच्छे आ गए और उसी आधार पर डीयू के वेकेंटेश कॉलेज में एडमिशन मिल गया। मैंने हिस्ट्री ऑनर्स पढ़ने का फैसला किया।
पॉकेट मनी के लिए कॉम्पिटिशन में शामिल होने लगी
कॉलेज के फर्स्ट ईयर में मैंने दिल लगाकर पढ़ाई की। मजा भी आया। लेकिन सेकेंड ईयर में फिर से कंफ्यूजन शुरू हो गया। लगा, इतिहास पढ़कर मैं क्या करूंगी? प्रोफेसर बनना नहीं, यूपीएससी करना नहीं, पढ़ाई को लेकर इतना जूनून नहीं। फिर इतनी मगजमारी किसलिए? मैं मस्ती मारने लगी। इसकी वजह से पॉकेट मनी कम पड़ जाती। उस वक्त इतने ही पैसे होते थे कि मैं कमरे का किराया, बस का भाड़ा और डेली एक टाइम चाट या गोलगप्पे खा सकूं। मुझे पता चला कि कॉलेज कॉम्पीटिशन में भाग लेने पर प्राइज मनी मिलती है। फिर मैंने पेंटिंग से लेकर हर छोटे-बड़े कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेना शुरू कर दिया।
स्टैंड अप कॉमेडी भी पैसे के लिए शुरू की
बारहवीं से मैंने फोन रखना शुरू कर दिया था। उस वक्त मैंने यूट्यूब पर कॉमेडियन अभिजीत गांगुली को लेडी श्रीराम कॉलेज में परफॉर्म करते देखा था। तब मैं ये नहीं जानती थी कि स्टैंडअप कॉमेडी किस बला का नाम है और ये भी एक कला होती है। कॉलेज के सेकेंड ईयर में पता चला कि हंसाने को लेकर भी कॉम्पीटिशन होता है और जीतने पर मिलते हैं पैसे हाहाहाहाहा…मैंने सोचा कोशिश करने में क्या जाता है। हालांकि, यहां भी मेरे अंदर इसे लेकर लग्न का कोई कीड़ा नहीं था। मैं महीने में या छह महीने में एक बार पार्टिसिपेट कर लेती। एक-दो बार ऐसे शो में जाने का फायदा ये हुआ कि लोगों से जान-पहचान होने लगी। चीजें थोड़ी समझ आने लगीं। इस दौरान मैं छोटे-मोटे स्टैंडअप कॉमेडी शो करती रही।