भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस संजीव खन्ना होंगे नियुक्त, डीवाई चंद्रचूड़ का स्थान लेंगे

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सीजेआई संजीव खन्ना का जन्म दिल्ली में हुआ, उनके पिता दिल्ली हाईकोर्ट के जज रह चुके हैं और मां कॉलेज में शिक्षिका थीं

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस संजीव खन्ना 11 नवम्बर से भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार संभालने जा रहे हैं। वे वर्तमान मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ के रिटायर होने के बाद यह पद ग्रहण करेंगे। जस्टिस खन्ना का कार्यकाल छह महीने का होगा, और वे 13 मई 2025 को रिटायर होंगे।

जन्म और परिवार

जस्टिस संजीव खन्ना का जन्म 14 मई 1960 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता न्यायमूर्ति देव राज खन्ना, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे, और उनकी मां सरोज खन्ना, दिल्ली विश्वविद्यालय के लेक्चरर थीं। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली में प्राप्त की और 1980 में दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से ही कानून की पढ़ाई की।

वकालत और न्यायिक करियर

वकालत में करियर की शुरुआत जस्टिस खन्ना ने 1983 में दिल्ली उच्च न्यायालय में वकील के रूप में की थी। उन्होंने विभिन्न न्यायाधिकरणों में प्रैक्टिस की और इसके बाद 2005 में दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किए गए थे। 2006 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत किया गया था।

18 जनवरी 2019 को जस्टिस संजीव खन्ना को भारत के सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया, जहाँ उन्होंने महत्वपूर्ण फैसले दिए और भारतीय न्यायिक व्यवस्था में अहम योगदान दिया।

परिवारिक पृष्ठभूमि

जस्टिस संजीव खन्ना का परिवार भी न्यायिक क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। उनके चाचा, हंसराज खन्ना भी सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके थे और उनके द्वारा दिए गए कई महत्वपूर्ण फैसले भारतीय न्यायिक इतिहास का हिस्सा बने।

न्यायिक योगदान और भविष्य

जस्टिस संजीव खन्ना के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय लिए गए हैं, जो भारतीय न्यायिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में सहायक रहे हैं। अब वे अपने कार्यकाल में और भी महत्वपूर्ण फैसले सुनाएंगे जो भारतीय नागरिकों के अधिकारों और न्याय की स्थापना के लिए मार्गदर्शन प्रदान करेंगे।

जस्टिस संजीव खन्ना की नियुक्ति से भारतीय न्यायपालिका को एक नया दिशा मिलेगा और उनका योगदान भारतीय न्यायिक इतिहास में महत्वपूर्ण रहेगा।

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