नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति हेनरी किसिंजर ने एक बार कहा था कि अगर किसी व्यक्ति का खाने पर कंट्रोल है तो वह देश को भी कंट्रोल कर सकता है।
वहीं, अमेरिकी इस्लामिक धर्मगुरु उमर फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि भूख आत्म-अनुशासन का पहला तत्व है। आप क्या खा रहे हैं और क्या पी रहे हैं, इस पर कंट्रोल रखेंगे तो हर चीज पर नियंत्रण हासिल कर सकते हैं।
इन मशहूर हस्तियों के विचारों से समझ ही गए होंगे कि खाना केवल खाना नहीं। यह ध्यान लगाने जैसा है, जो पेट को भरा रखने के साथ, दिल को खुशी और दिमाग को शांति देता है। अच्छा खाना हर मर्ज की दवा है। खाने को हमेशा सोच समझकर खाना चाहिए। इसे ‘माइंडफुल ईटिंग’ कहते हैं।
माइंडफुल ईटिंग होती क्या है?
फोर्टिस हॉस्पिटल, दिल्ली की डायटीशियन श्वेता गुप्ता कहती हैं कि खाने का कनेक्शन दिमाग से जुड़ा है। जब भी खाना खाएं, यह पता होना चाहिए कि आप क्या खा रहे हैं और क्यों खा रहे हैं। यह एक गुण है। अगर किसी को भूख लगी है और उसके सामने चिप्स और सेब हैं। वह सेब चुनता है तो यह मांइडफुल ईटिंग है क्योंकि वह जानता है कि चिप्स से वजन बढ़ेगा।
अगर किसी का मूड ऑफ है, उदास है या गुस्से में है और इन सब बातों का असर उसके खाने पर नहीं पड़ता तो यह भी माइंडफुल ईटिंग है। सरल शब्दों में कहें तो इमोशंस पर काबू रखते हुए सोच-समझकर खाने को ही माइंडफुल ईटिंग कहा जाता है।
माइंडफुल ईटिंग का इमोशनल कनेक्शन
हार्वर्ड स्कूल ऑफ मेडिसिन के हिसाब से माइंडफुल ईटिंग का मतलब है खाना खाते समय केवल उसी पर ध्यान देना। फिजिकली और इमोशनली व्यक्ति को पता हो कि क्या खा रहा है और जो खा रहा है उसके स्वाद का आनंद भी ले रहा है। साथ ही वह शरीर को नुकसान पहुंचाने वाला नहीं है।
माइंडफुल ईटिंग यानी खाने के बारे में जागरूक होना। यह एक ऐसा पुल है जो दिल और दिमाग के बीच खाना खाते वक्त बना रहता है और दिमाग सोच-समझकर खाने की सही चीज को ही चुनता है।
बौद्ध धर्म से जुड़ी है ‘माइंडफुल ईटिंग’
बौद्ध धर्म में ध्यान लगाने को बहुत अहम माना गया है। ‘माइंडफुल ईटिंग’ को इसी धर्म से जोड़ा जाता है। 1970 में अमेरिकन प्रोफेसर जॉन कबाट जिन ने 8 हफ्ते का माइंडफुलनेस बेस्ड स्ट्रेस रिडक्शन (MBSR) नाम का प्रोग्राम बनाया जिससे खाने के जरिए लोगों को बीमरियों और स्ट्रेस से मुक्ति मिले।
2009 में यूके नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ एंड केयर एक्सीलेंस ने माइंडफुल ईटिंग के आधार पर माइंडफुलनेस बेस्ड कॉग्निटिव थेरेपी (MBCT) बनाई जिससे डिप्रेशन और एंग्जाइटी का उपचार शुरू किया गया।
खाना देखने में अच्छा होगा तो खाने में भी मजा आएगा
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, दिल्ली में सीनियर क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट इशरत जहां ने बताया कि माइंडफुल ईटिंग यानी सोच समझकर खाने के भी कई पहलू होते हैं। जैसे- जो चीज खा रहे हैं, वह कैसी दिखती है, कितनी मात्रा में है और स्वाद कैसा है? खाना किस तरह दिखता है, यह भी एक बड़ा सवाल है, क्योंकि खाना देखकर ही खाने का मन करता है और तभी वह खुशी की वजह बनता है।
अगर खाना प्लेट में अच्छे से सजा हुआ नहीं है तो देखकर खाने का भी मन नहीं करेगा। खाने आपको अपनी ओर खींचे तभी उसे खाकर संतुष्टि मिलेगी। इससे साफ जाहिर है कि खाना खाने की इच्छा और हम कितनी मात्रा में खाते हैं, पूरी तरह दिमाग का खेल है। क्योंकि जब कोई खाना खाने बैठता है तो उसकी मानसिक दशा पहले से ही बता देती है कि उसे भूख लगी है। खाने को देखकर वो खुश होता है और खाने में मौजूद टेस्ट उसकी जुबान को अच्छे लगते हैं जो शरीर को फायदा पहुंचाते हैं।
इशरत जहां के अनुसार जब व्यक्ति खाने से संतुष्ट होता है तो वह खुश होता है। इससे शरीर में हैप्पी हॉर्मोन रिलीज होते हैं जिससे व्यक्ति स्ट्रेस फ्री रहने लगता है। माइंडफुल ईटिंग से मेंटल हेल्थ अच्छी रहती है।
20 मिनट लेट पहुंचता है दिमाग को पेट भरने का संकेत
हर इंसान को अपनी भूख को समझना चाहिए। जब सारा खाना पच जाता है तो खून में शुगर लेवल कम हो जाता है जिससे पेट में ग्रेलिन (Ghrelin) नाम का हॉर्मोन रिलीज होता है जो दिमाग के ‘हंगर सेंटर’ में भूख लगने का सिग्नल भेजता है। यही सिग्नल हमें भूख लगने का संकेत देता है। जब खाना खाने के बाद पेट भर जाता है तो लेप्टिन (Leptin) नाम का हॉर्मोन रिलीज होता है जो दिमाग को बताता है कि पेट भर चुका है। लेकिन यहां एक दिक्कत आ जाती है।
क्योंकि कई रिसर्च में यह बात साफ हो चुकी है पेट भरने का संदेश दिमाग के पास 20 मिनट लेट पहुंचता है। पेट भरने और दिमाग तक देरी से सिग्नल पहुंचने के इन 20 मिनटों में ही लोग ओवरईटिंग कर लेते हैं। माइंडफुल ईटिंग से जरूरत से ज्यादा खाने को रोका जा सकता है। यही वजह है कि ओवरईटिंग की समस्या को देखते हुए आजकल न्यूट्रिशनिस्ट खाना खाते समय टीवी या मोबाइल देखने को मना करते हैं।
वजन कम करने के लिए जरूरी है सोच समझकर खाना
माइंडफुल ईटिंग न कोई डाइट है और न ही डाइट प्लान। इसमें न खाना कम करना है, न ही खाना-पीना छोड़ना है। यहां वह हर चीज शामिल है जो खाई जा सकती है, लेकिन हेल्दी-अनहेल्दी, लिमिट में या अनलिमिटेड, क्या खाना है, इसका फैसला दिमाग को करना होता है। जब कोई इंसान खाने की कद्र करता है तो खाना भी उसकी कद्र करता है। खाने के प्रति यह नजरिया रखते हुए पूरी तरह खुद को प्लेट या थाली के प्रति फोकस रखना जरूरी है। यह नेचुरल तरीके से वजन कंट्रोल करने का बेस्ट तरीका है। इसमें जंक फूड या प्रोसेस्ड फूड नहीं खाया जाता। अगर आप सिर्फ चखते हैं या शौकिया खा भी लेते हैं तो बेशुमार खाने से बच जाते हैं।
प्रकृति की बनाई जितनी भी फल-सब्जियां हैं, वे दिमाग को शांत रखती हैं। और जब स्ट्रेस नहीं होता तो खाने पर फोकस बना रहता है। अगर पता रहे कि क्या, क्यों और कब खाना है तो शरीर का वजन खुद-ब-खुद कम काबू में रहता है।
बॉडी क्लॉक के हिसाब से तय करें खाने का टाइम
भूख कब लग रही है, यह इंसान को तभी पता चलता है जब वह स्ट्रेस फ्री हो। हर इंसान के शरीर में बॉडी क्लॉक होती है। अगर व्यक्ति उसी हिसाब से खाने का टाइम तय करे और 3-4 दिन लगातार उसी तयशुदा समय पर खाना खाए तो अपने आप शरीर बताने लगेगा कि भूख लगी है और खाने का टाइम हो गया है।
इसलिए रूटीन सेट होने पर लंच और डिनर टाइम पर खुद-ब-खुद भूख लगने लगने लगती है। जो लोग मेडिटेशन और एक्सरसाइज करते हैं, उनकी बॉडी क्लॉक उनके खाने का पैटर्न सेट कर देती है और उन्हें भूख का एहसास सही वक्त पर हो जाता है।
खाने में जो चीज पसंद नहीं, उसका विकल्प तलाश करें
माइंडफुल ईटिंग में पसंद-नापसंद भी मायने रखती है। हेल्दी खाने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि केवल उबली चीजें खाई जाएं। न्यूट्रिशनिस्ट इशरत जहां कहती हैं कि कई लोगों को उबली हुई लौकी की सब्जी पसंद नहीं आती। वह इसलिए क्योंकि वह दिखने में भी अच्छी नहीं सगती। इस वजह से कई बार अच्छी पौष्टिक चीज भी नजरअंदाज हो जाती है। यह एक ह्यूमन साइकोलॉजी है। जो दिखने में सुंदर होगा, वह अच्छा होगा। खाने के साथ भी यही बात होती है।
अगर हर हेल्दी डिश को अच्छी तरह से गार्निश किया जाए यानी प्लेट में अच्छी तरह से सजाकर परोसा जाए तो खाने का फ्लेवर और मसालों की महक उबले खाने को भी लजीज बना देगी। लेकिन फिर भी अगर कोई ऐसा खाना नहीं खाना चाहता तो वह लौकी का सूप बना सकता है। उसे दाल में डालकर या हल्की या बिना चीनी हलवा बनाकर भी खा सकता है।
लोग बिना सोचे समझे कुछ भी खा लेते हैं
डायटीशियन श्वेता गुप्ता कहती हैं कि अगर किसी को अपना लाइफस्टाइल सुधारना है तो सबसे पहले उसे अपने खाने-पीने के तौर तरीके ठीक करने होंगे। अगर जानकारी हो कि आपको क्या चीज खानी चाहिए और क्यों खानी चाहिए तो खाना खुद-ब-खुद स्वादिष्ट लगेगा।
लेकिन अधिकतर लोग बिना सोचे समझे कुछ भी मुंह में डाल लेते हैं, भले ही उनके शरीर को उस खाने की जरूरत हो या न हो। इससे शुगर लेवल और ब्लड प्रेशर भी बढ़ जाता है। प्रिजर्वेटिव फूड और जंक फूड खाने से मेंटल हेल्थ प्रभावित होती है जिससे व्यक्ति डिप्रेशन और एंग्जाइटी तक का शिकार हो सकता है। लेकिन सबसे पहले इसका असर शरीर के वजन पर दिखता है।