दक्षिण अफ्रीका में रविवार रात खेले गए ICC विमेंस अंडर-19 क्रिकेट वर्ल्ड कप को टीम इंडिया ने जीत लिया। रविवार को खेले गए फाइनल में भारत की बेटियों ने इंग्लैंड को 7 विकेट से हराया। मैच में MP की बेटी सौम्या तिवारी ने विनिंग पारी खेली। उन्होंने 37 गेंदों पर नाबाद 24 रन बनाए। जीत के बाद भोपाल में घर पर मैच देख रहे उनके माता-पिता और बहन साक्षी की आंखों में आंसू आ गए।
मां भारती ने इस मौके पर कहा कि बेटी ने फक्र से सिर ऊंचा किया। हमें उस पर नाज है। बता दें कि मैच शुरू होने के एक घंटे पहले से सौम्या की मां पूजा पर बैठ गई थीं। वे लगातार बेटी की जीत के लिए प्रार्थना करती रहीं। उनका कहना था कि जब तक बेटी नहीं जीतेगी, वह पूजा से नहीं उठेंगी।
मैच में टॉस हारकर पहले बैटिंग करते हुए इंग्लैंड की पूरी टीम 17.1 ओवर में 68 रन ही बना सकी। जवाब में भारत ने 14 ओवर में 3 विकेट के नुकसान पर 69 रन बनाकर मैच जीत लिया। जिसमें सौम्या और त्रिशा ने 24-24 रन की पारी खेली। कप्तान शैफाली वर्मा ने 15 रन बनाए।

बॉयकट की वजह से कोच ने कर दिया था मना
सौम्या टीम इंडिया की ऑलराउंडर हैं। उनका क्रिकेट खेलने और नेशनल टीम में सिलेक्शन का किस्सा भी खास है। सौम्या कभी बॉयकट हेयर स्टाइल रखने की वजह से क्रिकेट नहीं खेल पाई थीं, लेकिन उनके जिद-जज्बे की बदौलत वह आगे बढ़ीं और ऑलराउंडर प्रदर्शन के चलते टीम इंडिया में सिलेक्ट हो गई।
कपड़े धोने की मोगरी से खेलना सीखा
सौम्या भोपाल के रचना नगर के रहने वाले सरकारी कर्मचारी मनीष तिवारी की छोटी बेटी हैं। 10 साल की उम्र में सौम्या को क्रिकेट खेलने का शौक चढ़ा। फिर क्या था, घर में रखी कपड़े धोने की मोगरी और प्लास्टिक के बैट से क्रिकेट खेलना शुरू किया। बेटी के क्रिकेट के प्रति लगन को देखकर पिता मनीष और मां भारती तिवारी ने अरेरा क्रिकेट अकादमी में भर्ती करा दिया। बड़ी बहन साक्षी ने भी उसका साथ दिया। सौम्या को क्रिकेट ग्राउंड-घर लाने-ले जाने के साथ मोटिवेट करने का काम वही करती थीं। कभी-कभार बैट्समैन का रोल भी अदा किया।
दो दिन तक खूब रोई, जिद के आगे परिवार ने हार मानी
पिता मनीष तिवारी बताते हैं- सौम्या की उम्र तब 7-8 साल थी। वह मोहल्ले में बच्चों को क्रिकेट खेलते देखती थी। यहीं से उसे भी क्रिकेट खेलने का शौक लग गया। पहले कपड़े धोने की मोगरी से बैटिंग करती। फिर प्लास्टिक के बैट से खेलने लगी। मोहल्ले के बच्चे उसे अपने साथ कम ही खेलने देते थे। इसलिए जिद पकड़ ली कि मुझे क्रिकेट ही खेलना है। इस पर बड़ी बहन साक्षी उसे अरेरा क्रिकेट अकादमी में लेकर गईं और एडमिशन करा लिया। वह अपना हेयर स्टाइल बॉयकट रखती थी। जब सर (कोच) को पता चला, तो उन्होंने खेलने से मना कर दिया। दो दिन वह घर आकर खूब रोई। बेटी के क्रिकेट के प्रति इस हौंसले को देखते हुए हम फिर से उसे अकादमी लेकर पहुंचे। नन्ही सौम्या की जिद को देखते हुए कोच भी राजी हो गए। तब से अब तक सौम्या ने कभी मुड़कर नहीं देखा। 11 साल की उम्र में लेदर बॉल से खेलना शुरू कर दिया था।
सौम्या ने स्कूल, डिस्ट्रिक, डिवीजन से लेकर स्टेट लेवल पर हरफनमौला प्रदर्शन किया। 2017 में उसका मध्यप्रदेश-19 टीम में सिलेक्शन हो गया था। सौम्या का टारगेट वर्ल्ड कप खेलना था। इसके लिए वह तीन साल से मेहनत कर रही थी। इसके चलते वह डेढ़ साल परिवार से दूर रही। आखिरकार वह सिलेक्ट हो गई।
पहली बार दूर हुई तो खूब रोई
बात साल 2017 की है। सौम्या का सबसे पहले सीनियर डिवीजन की टीम में सिलेक्शन हुआ था। तब उसे टीम के साथ अकेले ग्वालियर जाना था। पिता, मां और बहन सुबह साढ़े 7 बजे उसे भोपाल स्टेशन पर छोड़ने गए। पिता मनीष ने बताया कि पहली बार वह परिवार से दूर हो रही थी, इसलिए मां से लिपटकर खूब रोई। जैसे-तैसे उसे ग्वालियर के लिए रवाना किया। कोच चित्रा वाजपेयी ने भरोसा दिलाया कि सौम्या का बेटी की तरह ख्याल रखेंगे। इसके बाद कुछ अच्छा लगा। हालांकि, तीन दिन तक सौम्या की कोई खबर नहीं मिली, तो मन हुआ कि हम सब ग्वालियर चले जाएं। बाद में बात होने पर कुछ अच्छा लगा। तब सौम्या की उम्र 11 साल थी। अभी वह 17 साल की है।
जब तक घर नहीं आ जाती, तब तक डर रहता था
सौम्या को घर से अकादमी लाने ले जाने के दौरान परिवार को चुनौतियां भी उठानी पड़ी। पिता ने बताया कि कई बार मजबूरी होती थी कि सौम्या को अकादमी छोड़ नहीं पाते, लेकिन वह कभी प्रैक्टिस से छुट्टी नहीं करती थी। इसलिए परिचित उसे लेकर जाते थे। जब तक वह घर नहीं आ जाती, तब तक डर बना रहता था।
कई बार मीठा खाने से परहेज, डाइट में ज्यूस और फ्रूट
मां भारती बताती हैं कि सौम्या को मीठा खाने से परहेज होता है। खासकर टूर्नामेंट या प्रैक्टिस के दौरान, इसलिए उसे ज्यादा से ज्यादा फ्रूट और ज्यूस देते थे। पनीर और भिंडी की सब्जी भी उसे पसंद है। डाइट में यह भी शामिल हैं।
10 पारियों में कम रन बनाए, तब हताश हो गई थीं
पिता मनीष तिवारी ने बताया कि कोरोना काल के बाद जब वह टूर्नामेंट खेलने मैदान में उतरी तो लगातार दस पारियों में उसने कम रन बनाए। इससे वह हताश हो गई। तब परिजन और कोच ने उसे मोटिवेट किया। आखिरकार उसकी परफॉर्मेंस सुधरने लगी और फिर हर टूर्नामेंट में अच्छा प्रदर्शन किया।
जब नेशनल टीम में सिलेक्ट हुई तो खुशी से उछल पड़ी
नेशनल टीम में सौम्या का पिछले साल नवंबर में सिलेक्शन हुआ। जैसे ही, सिलेक्शन की खबर सब खुशी से उछल पड़े। मानो सारी मुरादें पूरी हो गई हों। लगातार छह महीने प्रैक्टिस और टूर्नामेंट खेलने के बाद उसका सिलेक्शन हुआ। एनसीए ने मई-जून में कैम्प भी लगाया था। इसमें कुल 126 बच्चों को शामिल किया गया। इनमें से 90 बच्चे सिलेक्ट हुए। आखिर में 15 बच्चों का फाइनल सिलेक्शन हुआ। जिनमें सौम्या भी शामिल रही। सौम्या ने बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में ही अच्छा प्रदर्शन किया।