अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन इस वक्त विवादों में घिरे हैं, क्योंकि उनके निजी मकान से सीक्रेट सरकारी दस्तावेज मिले हैं। कुछ ही दिन पहले पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी इसीलिए विवादों में आ गए थे। राष्ट्रपति आवास व्हाइट हाउस छोड़ने के बाद उनके निजी रिसॉर्ट से कई सरकारी दस्तावेज मिले थे।
लेकिन सरकारी दस्तावेजों का ऐसा घालमेल सिर्फ अमेरिका ही नहीं, भारत में भी हो चुका है।
एक भारतीय प्रधानमंत्री ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने पद छोड़ते समय कई सरकारी दस्तावेज और पत्राचार अपने पास ही रख लिए। इन्हें एक लेखक को दिखाया और इनके आधार पर अपने महिमामंडन में किताब लिखने को कहा।
ये थे 1977 से 1979 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे मोरारजी देसाई।
PM पद छोड़ने के बाद मोरारजी देसाई जो गुप्त दस्तावेज अपने साथ ले आए थे उनमें कई कैबिनेट मंत्रियों, राजनयिकों और यहां तक कि राष्ट्रपति से हुआ पत्राचार शामिल था।
इसमें अमेरिका में भारतीय राजदूत की चिट्ठी भी शामिल थी जिसमें रूसी ताकतों के जनता पार्टी सरकार को गिराने के इरादे का जिक्र था। यही नहीं, इसमें प्रधानमंत्री के बेटे के बिजनेस इंटरेस्ट्स पर राष्ट्रपति की चिट्ठी भी शामिल थी।

यूं तो UPA-2 सरकार के कार्यकाल में भी ये आरोप लगते रहे थे कि हर सरकारी फाइल 7 रेसकोर्स रोड, यानी PM के सरकारी आवास के बजाय 10 जनपथ यानी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास से होकर गुजरती है। हालांकि, इन आरोपों पर कभी कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिले।
मोरारजी देसाई जो दस्तावेज अपने साथ ले गए थे उनमें से ज्यादातर का पूरा ब्योरा 1983 में छपी किताब ‘मोरारजी पेपर्स: फॉल ऑफ द जनता गवर्नमेंट’ में है।
जानिए, मोरारजी के घर पर रखे इन गुप्त सरकारी दस्तावेजों में कौन से राज छुपे थे…
कभी पक्के कांग्रेसी थे मोरारजी…इंदिरा के विरोध में अलग हुए, PM बने
मोरारजी देसाई स्वतंत्रता संग्राम के दौर से ही कांग्रेस में थे। आजादी के बाद केंद्र सरकारों में वे गृहमंत्री और वित्त मंत्री भी रहे थे।
1964 में लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद उन्हें प्रधानमंत्री पद का सबसे तगड़ा दावेदार माना जा रहा था, मगर वे इंदिरा गांधी से हार गए।
इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो उन्हें डिप्टी प्राइम मिनिस्टर बनाया गया। 1969 में कांग्रेस का विभाजन हुआ तो इंदिरा का विरोध करते हुए वे कांग्रेस (ओ) में शामिल हो गए।
1977 के चुनाव में कांग्रेस (ओ) ने बाकी विपक्षी दलों के साथ मिलकर जनता पार्टी के तौर पर चुनाव लड़ा। जनता पार्टी ने चुनाव जीता और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।
मोरारजी देसाई भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। हालांकि, जनता पार्टी की सरकार लगातार भीतरी लड़ाइयों के कारण कमजोर ही रही। महज दो साल बाद 1979 में मोरारजी देसाई को इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह इंदिरा गांधी के समर्थन से चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने, लेकिन सिर्फ 24 हफ्तों में ये सरकार भी गिर गई।
मोरारजी अकेले भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्च सिविल अवार्ड निशान-ए-पाकिस्तान मिला था। उनके अलावा ये अवार्ड पाने वाले भारतीय सिर्फ हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी हैं।
अब जानिए, मोरारजी कौन से दस्तावेज PMO से घर ले गए
सरकारी चिटि्ठयों का पुलिंदा था मोरारजी के पास…इनमें दर्ज बातों को गोपनीय मानती है सरकार
मोरारजी देसाई के पास सरकारी चिटि्ठयों का पूरा पुलिंदा था। इनमें कैबिनेट मंत्रियों से और राजदूतों से हुए पत्राचार के साथ ही राष्ट्रपति से हुआ पत्राचार भी शामिल था।
इन चिटि्ठयों को उन्होंने लेखक अरुण गांधी को दिखाया था। मोरारजी चाहते थे कि इन चिटि्ठयों के आधार पर अरुण गांधी, उनकी जीवनी लिखें।
उनका इरादा था कि महात्मा गांधी के पोते अरुण गांधी उन्हें अपनी किताब में एक गांधीवादी के तौर पर चित्रित करें जो इंदिरा गांधी की साजिश का शिकार हुआ।
अरुण गांधी को जो दस्तावेज मोरारजी ने दिखाए, उसकी पुष्टि वरिष्ठ पत्रकार वीर सांघवी भी अपनी किताब ‘अ रूड लाइफ: ए मेम्योर’ में करते हैं। सांघवी के मुताबिक अरुण गांधी, मोरारजी के घर से जो दस्तावेज लाते थे वो उनके साथ बैठकर ही देखते थे।
अरुण गांधी ने अपनी किताब ‘द मोरारजी पेपर्स: फॉल ऑफ द जनता गवर्नमेंट’ 1983 में पब्लिश की। हालांकि मोरारजी इस किताब से खुश नहीं थे। उनकी इच्छा के उलट अरुण गांधी ने उनके महिमामंडन के बजाय उनके गुप्त दस्तावेजों पर ही पूरा फोकस रखा था।
किताब में इन दस्तावेजों के जरिये ये दिखाया गया था कि जनता पार्टी की सरकार के कार्यकाल में किस तरह मंत्रियों के बीच झगड़े हो रहे थे और यहां तक कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी एक-दूसरे से सहमति नहीं रखते थे।
मोरारजी देसाई के बेटे कांति देसाई एक व्यापारी थे। जब मोरारजी, इंदिरा गांधी की सरकार में डिप्टी प्राइम मिनिस्टर थे, तब विपक्ष ने आरोप लगाए थे कि कांति देसाई अपने पिता की पहुंच का गलत फायदा उठाते हैं। उस समय इंदिरा गांधी ने संसद में दिए अपने जवाब में इन आरोपों को खारिज कर दिया था।
जब मोरारजी देसाई खुद प्रधानमंत्री बने तब उनके बेटे के व्यावसायिक हितों को लेकर कई विवाद उठे। एक बार राष्ट्रपति भवन के कार्यक्रम में बुलाए जा रहे अतिथियों की लिस्ट में कांति देसाई ने उद्योगपति हिंदुजा ब्रदर्स का नाम जुड़वाना चाहा।
उस समय नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति थे। उन्होंने मोरारजी देसाई को एक चिट्ठी लिखकर इस बात पर आपत्ति जताई थी। हालांकि, मोरारजी ने अपने जवाब में इसे एक सामान्य बात बताते हुए कहा था कि उद्योगपतियों को राष्ट्रपति भवन बुलाए जाने में कुछ गलत नहीं है।



