उत्तर प्रदेश के संभल जिले में प्रशासन और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा की जा रही खुदाई के दौरान एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कूप की खोज की गई है, जिसे ‘मृत्यु कूप’ कहा जा रहा है। यह कूप शाही जामा मस्जिद से केवल 280 मीटर की दूरी पर स्थित है और संभल के 19 महत्वपूर्ण कूपों में से एक है। यह कूप महादेव मंदिर के पास स्थित है और इसे वर्षों से मलबे और कूड़े से पाटा गया था।
खुदाई के दौरान इस कूप के अवशेषों के मिलने के बाद स्थानीय प्रशासन और ASI टीम ने इसे ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना है। इस कूप को लेकर स्कंद पुराण में भी उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि इस कूप में स्नान करने से साधक को सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
मृत्यु कूप का ऐतिहासिक महत्व
स्कंद पुराण में ‘मृत्यु कूप’ के बारे में लिखा गया है, “विमलेशादुत्तरतः कूपो वै मृत्युसंज्ञकः, अत्र स्नात्वा महाकालार्चनं सकलसिद्धिदम्”, जिसका अर्थ है कि विमलेश के उत्तर में एक ऐसा कूप है जिसे मृत्यु कूप कहा जाता है, और यहां स्नान करने तथा महाकाल की आराधना करने से सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
इसके अलावा, इस कूप का उल्लेख संभल के ऐतिहासिक मानचित्र में भी किया गया है, जहां इसे हरि मंदिर के उत्तर में दर्शाया गया है। वर्षों से बंद पड़े इस कूप की खोज में प्रशासन ने खुदाई शुरू की, और अब यह कूप पुनः उजागर हुआ है।
प्रशासन और ASI की संयुक्त कोशिशें
बीते बुधवार को संभल के डीएम राजेंद्र पेंसिया और एसपी कृष्ण विश्नोई ने स्कंद पुराण में वर्णित इस कूप की खुदाई कार्य का निरीक्षण किया। साथ ही, उन्होंने स्थानीय लोगों से जानकारी जुटाई कि किस प्रकार से पौराणिक कूपों को मलबे से पाटा गया था। इस दौरान अधिकारियों ने पूरे क्षेत्र का दौरा किया और आगामी खुदाई कार्य के लिए जरूरी कदम उठाए।
अधिकारियों ने किया ऐतिहासिक स्थलों का दौरा
गौरतलब है कि इस खुदाई अभियान के तहत पहले ही फिरोजपुर किला, बावड़ियां और चोर कुआं जैसे प्राचीन संरचनाओं की खोज हो चुकी है। ‘मृत्यु कूप’ के अवशेष मिलने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि संभल क्षेत्र ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
जनता की उत्सुकता बढ़ी
मृत्यु कूप के अवशेष मिलने के बाद से ही लोग मौके पर पहुंच रहे हैं और कूप के इतिहास को जानने के लिए उत्सुक हैं। प्रशासन और ASI की टीम अब इस क्षेत्र के और भी ऐतिहासिक स्थलों की तलाश में जुटी हुई है, ताकि इनका संरक्षण किया जा सके और भविष्य में इनका महत्व लोगों तक पहुंच सके।