- आज तक ऐतिहासिक अल्मोड़ा जेल को नहीं मिली संरक्षित धरोहर की मान्यता
- देश के पहले प्रधानमंत्री की स्मृति में बनाया गया ‘नेहरू वार्ड’
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की याद में 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। बच्चों के प्रिय “चाचा नेहरू” के रूप में प्रसिद्ध, पंडित नेहरू ने अपनी दो महान कृतियों – मेरी आत्मकथा और भारत एक खोज के कुछ अंश अल्मोड़ा जेल में बंद रहते हुए लिखे थे। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष के दौरान उन्हें कई बार जेल भेजा गया, जिनमें कुल 317 दिन उन्होंने अल्मोड़ा जेल में बिताए।
नेहरू की जेल यात्रा और संघर्ष की कहानी
पंडित नेहरू ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपने जीवन के 9 वर्ष जेल में बिताए, जिसमें 317 दिन अल्मोड़ा जेल में भी शामिल थे। उनकी जेल यात्रा 3259 दिनों की थी, जिसमें से पहली बार 28 अक्टूबर 1934 को उन्हें अल्मोड़ा जेल भेजा गया, जहाँ उन्होंने 311 दिन बिताए। इस दौरान उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक मेरी आत्मकथा के कुछ अंश लिखे। इसके बाद 1945 में उन्होंने भारत एक खोज के महत्वपूर्ण अंशों की रचना भी अल्मोड़ा जेल में की, जिसने भारतीय इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत चित्रण प्रस्तुत किया और बाद में यह पुस्तक दूरदर्शन के लोकप्रिय धारावाहिक के रूप में भी दर्शकों तक पहुंची।
जेल में संजोई गई चाचा नेहरू की स्मृतियां
अल्मोड़ा जेल में आज भी नेहरू वार्ड नामक स्थान पर उनके उपयोग की गई वस्तुएं जैसे बिस्तर, फर्नीचर, थाली, लोटा, गिलास, दीपदान, और गांधी चरखा संजो कर रखे गए हैं। यह वही स्थान है जहाँ पंडित नेहरू को कैद किया गया था। इस जेल में एक पुस्तकालय कक्ष और किचन भी मौजूद है, जहाँ से उनके जेल प्रवास के समय की यादें आज भी जीवित हैं।
ऐतिहासिक अल्मोड़ा जेल को संरक्षित धरोहर बनाने की आवश्यकता
1872 में बनी इस ऐतिहासिक जेल में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बंद किया जाता था। आजादी के बाद भी यह जेल अपने इतिहास को संजोए हुए है, परंतु इसे संरक्षित धरोहर घोषित करने की मांग अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। इस ऐतिहासिक स्थल का संरक्षण न केवल शोधार्थियों बल्कि नई पीढ़ी के लिए भी महत्वपूर्ण होगा, जिससे उन्हें स्वतंत्रता संग्राम और नेहरू जी के संघर्ष की अनमोल धरोहर को समझने का अवसर मिलेगा।
पंडित नेहरू की कृतियों में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का वर्णन
भारत एक खोज पुस्तक में प्राचीन से लेकर आधुनिक इतिहास तक का व्यापक विश्लेषण किया गया है, जिसमें भारत की विविधता और सांस्कृतिक धरोहर का सजीव वर्णन मिलता है। 1935 में लिखी गई मेरी आत्मकथा में नेहरू जी ने अपने बचपन, शिक्षा, राजनीतिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका को साझा किया है, जिससे उनके विचारों और आदर्शों की झलक मिलती है।
अल्मोड़ा जेल के नेहरू वार्ड में संजोए गए पंडित नेहरू की स्मृतियाँ आने वाली पीढ़ियों को उनके संघर्ष, बलिदान और विचारधारा की प्रेरणा देती रहेंगी।