- महाकुंभ 2025 में हर्षा रिछारिया चर्चा का विषय बनी हुई हैं। उन्होंने पश्चिमी सभ्यता का त्याग कर सनातन धर्म को अपनाते हुए अध्यात्म का मार्ग चुना है। निरंजनी अखाड़े में आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंदगिरी की शिष्या बनने के बाद, हर्षा सोशल मीडिया के माध्यम से सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में सक्रिय हैं। ट्रोलर्स को जवाब देते हुए उन्होंने अपने आध्यात्मिक सफर को मजबूती और विश्वास का प्रतीक बताया है।
प्रयागराज में चल रहे 45 दिवसीय महाकुंभ 2025 ने अद्वितीय आध्यात्मिक आकर्षण प्रस्तुत किया है। इसी कड़ी में, दो वर्ष पूर्व पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने वाली पूर्व अभिनेत्री और इन्फ्लुएंसर हर्षा रिछारिया ने अध्यात्म की राह अपनाकर सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया है।
रुद्राक्ष और फूलों की माला, माथे पर तिलक और साध्वी के वेश में अब हर्षा निरंजनी अखाड़े में आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंदगिरी की शिष्या बन चुकी हैं। उन्होंने पश्चिमी सभ्यता के कपड़ों और जीवनशैली को त्यागकर सनातनी ध्वज थाम लिया है। हर्षा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे इंस्टाग्राम और फेसबुक के माध्यम से सनातन धर्म का संदेश प्रसारित कर रही हैं।
पुराने वीडियो पर ट्रोलिंग और सौम्य जवाब
हर्षा रिछारिया को उनके पुराने वीडियो पर ट्रोल किया जा रहा है, जहां वह पश्चिमी परिधान में नृत्य करती नजर आती थीं। इस पर वह सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए कहती हैं, “यह देखना चाहिए कि सनातन धर्म कैसे जीवन को बदल देता है।” उन्होंने बताया कि भक्ति और साधना की कोई उम्र नहीं होती। यह सब ईश्वर और गुरुजनों की कृपा से संभव है।
साध्वी बनने की प्रक्रिया में हर्षा
हर्षा ने स्पष्ट किया कि उन्हें अभी साध्वी की दीक्षा नहीं मिली है। वह खुद को साध्वी कहलाने के बजाय एक शिष्या के रूप में पहचानती हैं। अब उनका उद्देश्य जीवनभर धर्म का प्रचार-प्रसार करना है।
महाकुंभ में श्रद्धालुओं का सैलाब
पौष पूर्णिमा (13 जनवरी) से शुरू हुए महाकुंभ के पहले दो दिनों में 5 करोड़ से अधिक श्रद्धालु पवित्र त्रिवेणी संगम में डुबकी लगा चुके हैं। मकर संक्रांति पर प्रथम अमृत स्नान के अवसर पर 3.5 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई।
प्रशासनिक तैयारियां जारी
मेला प्रशासन अब प्रदेश सरकार की कैबिनेट बैठक के लिए तैयारी कर रहा है। इस संबंध में बुधवार को उच्चाधिकारियों की महत्वपूर्ण बैठक होगी।
महाकुंभ 2025 आध्यात्मिकता और आस्था का प्रतीक बनकर करोड़ों श्रद्धालुओं को संगम तट पर आशीर्वाद लेने के लिए प्रेरित कर रहा है।