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सनातन परंपरा का अनुपम उदाहरण: दंपती ने जूना अखाड़े में किया ‘कन्या-दान’

  1. मेधावी छात्रा: बमरौली कटारा के टरकपुरा की राखी ने अपनी शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और परिवार का नाम रोशन किया।
  2. मृदुभाषी व्यक्तित्व: अपने सौम्य और विनम्र स्वभाव के लिए जानी जाने वाली राखी ने सभी का दिल जीता।
  3. पूजा-पाठ में रुचि: राखी की विशेष रुचि पूजा-पाठ और सनातन धर्म की परंपराओं में रही है।

महाकुंभ 2025 में जूना अखाड़े में शामिल होकर बमरौली कटारा के टरकपुरा गांव की राखी ने सनातन धर्म और आध्यात्मिक परंपराओं को सशक्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। राखी के परिवार ने इसे अपना सौभाग्य बताया और उसकी इच्छा का सम्मान करते हुए उसे आध्यात्मिक जीवन के लिए समर्पित कर दिया।

पौत्री ने कुल का नाम रोशन किया राखी के 70 वर्षीय दादा, रौतान सिंह ने गर्व व्यक्त करते हुए कहा, “राखी ने कुल का नाम रोशन किया है। वह अब सनातन धर्म को मजबूत करने में अपना योगदान देगी।” उन्होंने बताया कि राखी एक मृदुभाषी और अंतरमुखी स्वभाव की लड़की है, जो पूजा-पाठ और धर्म के प्रति गहरी आस्था रखती है।

होनहार और संस्कारी छात्रा राखी, स्प्रिंग फील्ड इंटर कॉलेज में कक्षा नौ की छात्रा है। कॉलेज के प्रबंधक पीसी शर्मा ने कहा कि राखी पढ़ाई में तेज और अपने विचारों से लोगों को आकर्षित करने की अद्भुत कला रखती है।

साध्वी बनने की इच्छा पूरी सोमवार को राखी के माता-पिता संदीप सिंह धाकरे और रीमा ने महाकुंभ में जूना अखाड़ा के संत कौशल गिरि के सान्निध्य में राखी को दान किया। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच राखी को शिविर में प्रवेश कराया गया और उसका नया नामकरण ‘गौरी’ किया गया।

19 जनवरी को होगा पिंडदान गौरी का पिंडदान 19 जनवरी को शिविर में होगा, जिसके बाद सभी धार्मिक संस्कार पूरे किए जाएंगे। इसके साथ ही वह गुरु के परिवार का हिस्सा बन जाएगी और मूल परिवार से उसका नाता समाप्त हो जाएगा।

परिवार ने जताया सौभाग्य राखी की मां रीमा ने बताया कि उनका परिवार पिछले चार वर्षों से गुरु की सेवा में जुड़ा हुआ है। गुरु कौशल गिरि ने उनके मोहल्ले में भागवत कथा का आयोजन किया था, तभी से उनका झुकाव आध्यात्मिकता की ओर बढ़ा। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी ने साध्वी बनने की इच्छा जताई थी, जिसे पूरा कर उन्होंने खुद को सौभाग्यशाली महसूस किया।

गुरु कौशल गिरि का बयान जूना अखाड़ा के महंत कौशल गिरि ने बताया, “परिवार ने बिना किसी दबाव के बेटी का दान किया है। गौरी (राखी) की इच्छा और परिवार की सहमति से उसे आश्रम में स्वीकार किया गया है। यदि गौरी आगे पढ़ाई करना चाहेगी तो उसे अध्यात्म की शिक्षा दी जाएगी।”

समर्पण और सेवा का उदाहरण राखी का यह निर्णय सनातन धर्म और आध्यात्मिकता की दिशा में एक प्रेरणादायक कदम है। महाकुंभ 2025 के इस पवित्र अवसर पर उसका साध्वी बनने का संकल्प आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करेगा।

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