लखनऊ की संगीत नाट्य एकेडमी में बुधवार को हास्य नाटक ‘तिल का ताड़’ का मंचन हुआ। नाटक का मंचन अनादि संस्था के चार दिवसीय नाट्य समारोह के तीसरे दिन हुआ। इस मजेदार नाटक का लेखन किया शंकर शेष ने। तो वहीं निर्देशन रहा मुन्नी देवा का।
तिल का ताड़ कुंवारों की समस्या पर आधारित था। नाटक का मुख्य किरदार नाटक प्राणनाथ धन्नामल से झूठ बोलकर उसके यहां किराए पर रहता है। कुंवारा होकर भी वो कहता है कि उसकी शादी हुए एक साल हो गया है। उसकी मां की तबियत खराब है और बीवी भी मां के पास गई है। कुछ ही दिनों में आ जाएगी। एक साल बीत जाता है, लेकिन वो नहीं आती। इससे नाराज धन्नामल प्राणनाथ को एक दिन की मौहलत देता है। वो कहता है “अगर कल तक तुम्हारी पत्नी नहीं आई। तो परसों मकान खाली कर देना”।
दर्शकों ने खूब ठहाके लगाए
प्राणनाथ अपने दोस्त पतीत पावन से अपनी परेशानी बताता है। वो उससे एक औरत का इंतजाम करने को कहता है। एक दिन प्राणनाथ के घर के बाहर मंजू को कुछ गुंडे छेड़ रहे होते हैं। वो मंजू को बचाकर घर लाता है और अपनी समस्या उसे बताता है। प्राणनाथ की मदद का कर्ज चुकाने के लिए मंजू उसकी नकली पत्नी बनने को मान जाती है। फिर शुरू होता है हंगामों का सिलसिला। जिसे देख दर्शकों ने खूब ठहाके लगाए।
कुंवारा लफंगा नहीं होता- नाटक ने दिया संदेश
प्राणनाथ के एक और दोस्त जो की ब्रह्मचारी है। उसे उसके झूठ का पता चल जाता है। पावन ऑफिस की एक लड़की को उस ब्रह्मचारी के पीछे लगा देता है। उस लड़की से ब्रह्मचारी काफी परेशान हो जाता है। ये देख दर्शक अपनी हंसी रोक नहीं पाए। इसी बीच प्राणनाथ के असली होने वाले ससुर उसके घर आ जाते हैं। उधर उसके असली पिताजी भी धमक पड़ते हैं। दोनों पिताओं को लगता है प्राणनाथ ने उन्हें धोखा देकर शादी करली है। फिर से शुरू होता है हंसी का डबल डोज।
अंत में प्राणनाथ सबको पूरा सच बता देता है। नाटक ने सन्देश दिया कि हर कुंवारा लफंगा नहीं होता। इसलिए समाज के लोगों को कोई भी राय बनाने से पहले सोचना चाहिए।