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1000 लोगों की जान बचा चुके हैं श्रीपाल:गोमती में मौत की छलांग लगाने वालों को बचाते हैं; बेटे की मौत के दिन भी काम किया

श्रीपाल निषाद… यह उस शख्स का नाम है, जिसने 1011 ऐसे लोगों को बचाया जो खुद मरना चाहते थे। लोग सुसाइड करने के लिए गोमती नदी में कूदते, लेकिन ऐन वक्त पर श्रीपाल उन्हें बचाने पहुंच जाते। यही नहीं, बीते 30 सालों में उन्होंने नदी से 1500 से ज्यादा लाशें निकालकर पुलिस को सौंपी हैं। इस काम के लिए उन्हें कोई सैलरी नहीं मिलती। हां, कभी-कभी थोड़ा बहुत सम्मान जरूर मिल जाता है। यूपी पुलिस ने श्रीपाल को विशेष पुलिस अधिकारी का दर्जा दिया है।

दैनिक भास्कर की टीम गोमती नदी के उस पॉइंट पर पहुंची, जहां बीते एक साल में सबसे ज्यादा सुसाइड की कोशिशें हुईं। हमने श्रीपाल और उनके साथी गोताखोरों से बात की। लाशों के बीच काम करते हुए उनके अनुभवों को करीब से जाना। आइए आपको उनकी पूरी कहानी बताते हैं। शुरुआत 5 दिन पुरानी एक घटना से…

25 जनवरी 2023…दोपहर के 12:30 बजे। लखनऊ के गोमती रिवरफ्रंट के किनारे श्रीपाल और उनके भाई रामशंकर निषाद खाना खाने बैठे। इस बीच उन्होंने देखा कि एक लड़की तेजी से नदी की तरफ भाग रही है। दूसरे गुंबद के पास पहुंचकर वह रुक गई। उसके रुकने तक श्रीपाल पूरा माजरा समझ चुके थे। उन्होंने चिल्लाते हुए उससे पीछे हटने को कहा। लड़की नहीं मानी। वो गुंबद पर चढ़ी और 50 फीट की ऊंचाई से नदी में कूद गई।

श्रीपाल खाना छोड़कर भागे। बगल में बैठे रामशंकर से नाव लाने को कहा और नदी में छलांग लगा दी। पानी के अंदर 3 मिनट तक वह लड़की को खोजते रहे। जहां बुलबुले निकल रहे थे वहां तैर कर पहुंचे। लड़की पानी के अंदर छटपटा रही थी। हाथ-पांव मार रही थी। श्रीपाल ने उसके बाल पकड़ लिए और पानी के ऊपरी छोर पर ले आए।

मैं जिंदा नहीं रहना चाहती…मुझे डूब जाने दो। छोड़ो मुझे।’ लड़की चिल्लाती रही पर श्रीपाल ने नहीं छोड़ा। तब तक उनके भाई रामशंकर वहां नाव लेकर पहुंच गए। लड़की को बाहर निकाला। पुलिस मौके पर पहुंची। जांच की तो पता चला लड़की को प्यार में धोखा मिला है। इसलिए वह जीना नहीं चाहती।

दिनभर नदी किनारे रहते हैं, 24 घंटे फोन ऑन रहता है
लखनऊ में जान देने के लिए गोमती नदी में कूदने वालों में कई जिंदा नहीं बचते, तो कुछ को नदी किनारे मौजूद गोताखोर बचा लेते हैं। श्रीपाल की तरह लखनऊ में करीब 25 गोताखोर हैं, जो अपने पुरखों की तरह ये जोखिम भरा काम करते हैं। इनमें से कुछ तेज-तेर्रार गोताखोरों को यूपी पुलिस से ‘विशेष पुलिस अधिकारी’ का दर्जा मिला है। श्रीपाल भी उनमें से एक हैं।

यूपी पुलिस से दिए गए अपने कार्ड को दिखाते हुए श्रीपाल कहते हैं, “सुबह से शाम तक नदी के किनारे रहते हैं। खाली वक्त में मछली भी पकड़ता हूं। लखनऊ के सभी पुलिस स्टेशनों पर हमारे नंबर दिए गए हैं। इसलिए 24 घंटे फोन ऑन रखना पड़ता है। देर रात थाने से फोन आने पर भी मौके पर पहुंचना पड़ता है। मैंने ठंड के वक्त 9 डिग्री तापमान में भी पानी में 15 फीट नीचे जाकर रेस्क्यू किया है।”

श्रीपाल 30 साल से गोमती किनारे गोताखोरी का काम कर रहे हैं। इस दरमियान उन्होंने 1000 से ज्यादा लोगों की जान बचाई। वहीं, 1500 से ज्यादा डेडबॉडी निकाली है। श्रीपाल के पिता रामचंदर निषाद भी लखनऊ के पुराने गोताखोर थे। साल 2013 में उनका निधन हो गया।

‘बेटे की मौत के दिन भी मैंने काम किया’
श्रीपाल के परिवार में 6 लोग हैं। पत्नी, 2 लड़के और लड़कियां। सबसे बड़े बेटे विकास की मौत 2019 में एक सड़क हादसे में हो गई थी। जब विकास की मौत हुई, उस दिन भी श्रीपाल ने काम किया था।

वह कहते हैं, “31 मार्च 2019 का दिन था। मेरा बेटा घर से बाहर मोबाइल पर किसी से बात कर रहा था। तभी अचानक तेजी से आ रही कार ने उसे ठोकर मार दी। 20 मीटर दूर जाकर गिरा। हम उसे ट्रॉमा सेंटर ले गए, लेकिन खून बहुत ज्यादा बहने से उसकी मौत हो गई। बेटे की बॉडी मॉर्च्युरी में रखने की तैयारी हो रही थी, तभी मेरे पास गोमतीनगर थाने से फोन आया कि एक लड़की नदी में कूद गई है। मैं पत्नी को पोस्टमॉर्टम हाउस छोड़कर चला गया।”

“जब मैं वहां पहुंचा तो लड़की को नदी में कूदे हुए आधे घंटे बीत गए थे। नदी में गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मैंने नदी से लाश निकाली और पुलिस को सौंपकर वापस बेटे का अंतिम संस्कार करने पहुंच गया। मेरी जिंदगी में उस दिन से बुरा कोई दिन नहीं था।”

जान बचाने गए थे, खुद मरने से बचे
नदी में डूबते लोगों को बचाते समय गोताखोरों की जान को भी खतरा रहता है। लंबे समय तक पानी में रहने से शरीर का वजन बढ़ जाता है। इस वजह से गहराई में जाकर रेस्क्यू करना कई बार गोताखोरों के लिए भी जानलेवा साबित होता है।

गोताखोर रमेश कहते हैं, “हम गोताखोर पानी में 3 से 4 मिनट तक सांस रोक सकते हैं। बावजूद इसके हर वक्त जान जाने का खतरा रहता था। पिछले साल डालीगंज पुल के पास एक महिला नदी में कूद गई थी। हमारे साथी गोताखोर रामलखन उसकी लाश निकालने नदी में कूदे थे। वह बॉडी के बाल पकड़कर किनारे ला रहे थे, लेकिन लाश के भारी वजन के कारण उनका बैलेंस बिगड़ गया। दोनों नदी की गहराई में जाने लगे। किसी तरह रस्सी के सहारे उन्हें बाहर लाया गया।”

ऐसी ही एक घटना साल 2020 में गोताखोर रामशंकर के साथ हो चुकी है। वह बताते हैं, “गोमती बैराज के पास एक लड़का नदी में कूद गया था। बहुत देर तलाशी के बाद भी उसकी लाश नहीं मिल पाई थी। पुलिस के बुलाने पर मैं और श्रीपाल मौके पर पहुंचे। दोनों ने 40 मिनट के बाद उसके शव को खोज निकाला, लेकिन लाश उठाते वक्त नदी में पत्थर पर लगा सरिया मेरे सीने के पास घुस गया। इसके बाद मैं पानी में ही छटपटाने लगा। उस चोट का निशान आज भी मेरे सीने पर मौजूद है।”

लाश निकालते-निकालते आंखें लाल हो गई पर सुरक्षा उपकरण नहीं मिले
गोताखोर श्रीपाल बताते हैं, “पुलिस का फोन आने पर लखनऊ, बाराबंकी, सीतापुर और उन्नाव तक शव निकालने जाना पड़ता है। फिर भी गोताखोरों को कोई सुरक्षा उपकरण नहीं दिए जाते। नदी में कई जगह नालों का बदबूदार पानी भी गिरता है। गंदे पानी में जाकर सांस रोकना और शव खोजना मुश्किल भरा काम होता है। इसमें जोखिम के साथ बीमारी होने का भी खतरा है।”

वो आगे कहते हैं कि गोमती का पानी इतना खराब है कि लाश निकालते-निकालते आंखें लाल हो गई हैं। ये काम करने का हमें कोई इनाम नहीं मिलता। हां… कभी-कभी शव निकालने पर पुलिस 300 से 500 रुपए जरूर थमा देती है।

पुलिस की मदद के लिए हमेशा नदी में कूदने को तैयार रहने वाले गोताखोरों को कोई खास सुविधा भी नहीं मिलती। गोमती रीवरफ्रंड के 3 मेन पुलों पर गोताखोर श्रीपाल, रामशंकर, रमेश और अजीत तैनात हैं। सब ने बताया कि गोताखोरी से जुड़े परिवारों की मूलभूत सुविधाओं पर भी कोई ध्यान नहीं देता। चाहे ठंड हो या गर्मी हमें पूरा दिन घाट पर रहना पड़ता है। यहां गोताखोरों के ठहरने के लिए कोई चौकी भी नहीं बनाई गई है। इतनी तंगी है कि घर चलाने के लिए कुछ गोताखोरों ने काम छोड़कर सब्जी बेचना, मछली पकड़ना और रिक्शा चलाने का काम शुरू कर दिया है।

डूबे लोगों के शरीर से पानी निकालने में पसीना छूट जाता है
गोमती में कूदे लोगों को बाहर निकालने के बाद भी गोताखोरों का काम खत्म नहीं होता। कई बार लोग बेहोश हो जाते हैं, जिन्हें होश में लाने के लिए उनके शरीर का पानी निकालना पड़ता है।

श्रीपाल कहते हैं, “पिछले साल नदी में एक लड़की कूद गई थी। लड़की को जब नदी से बाहर लाया तब वो होश में नहीं थी। हम सभी ने मान लिया था कि वो मर चुकी है। फिर हमने आखिरी कोशिश की। उसे उल्टा लिटाकर कमर के पीछे जोर से धक्का दिया। इसके बाद वो अचानक खांसने लगी और उल्टी कर दी। वो लड़की आज भी हम लोगों से कभी-कभी मिलने आती है। मुझे बहुत खुशी होती है जब हमारे बचाए हुए लोग हमसे मिलने आते हैं।”

10वीं-12वीं रिजल्ट के बाद काम बढ़ जाता है
श्रीपाल के मुताबिक, वेलनटाइन-डे और 10वीं-12वीं का रिजल्ट आने से पहले गोताखोरों का काम बढ़ जाता है। क्योंकि, इस बीच प्यार में धोखा खाए लोग और परीक्षा में फेल होने पर छात्र अक्सर नदी में कूदते हैं। इसलिए जिस दिन रिजल्ट आना होता है, उस दिन हर पुल के नीचे 2 से 3 गोताखोर रहते हैं। छठ पूजा और गणेश चतुर्थी में भी गोताखोरों का वर्कलोड बढ़ जाता है।

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