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तुलसीदास के दलित पड़ोसी बोले- रामचरितमानस में कुछ गलत नहीं:जन्मस्थान पर विवाद, मंदिर से 500 मीटर दूर दलित बस्ती

तुलसीदास वो कवि हैं, जिन्होंने रामकथा को देश के आम लोगों तक पहुंचाया। हालांकि रामचरितमानस में स्त्री और दलितों को लेकर कुछ चौपाइयां हैं, जो हमेशा विवादों में रहीं, आज भी हैं। सिर्फ चौपाइयों पर ही नहीं, तुलसीदास का जन्म कहां हुआ, इस पर भी विवाद है। यूपी के कासगंज, चित्रकूट और गोंडा के अपने-अपने दावे हैं।

चित्रकूट के राजापुर और कासगंज के सोरों में तुलसीदास के मंदिर से सिर्फ कुछ सौ मीटर दूर दलितों की बस्तियां हैं। सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के रामचरितमानस में संशोधन की मांग के बाद इस मामले ने फिर तूल पकड़ लिया है। मैं इन दलित बस्तियों में पहुंचा और यहां रहने वालों से पूछा कि तुलसीदास की इन चौपाइयों से वो क्या समझते हैं।

तुलसीदास की तीन चौपाइयों पर सबसे ज्यादा आपत्ति जताई जा रही है। ये सभी रामचरितमानस में अलग-अलग कांड में लिखी गई हैं। इनके अर्थ को लेकर भी विवाद है। आरोप लगाया जा रहा है कि तुलसीदास दलित और महिला विरोधी हैं।

लखनऊ से करीब 200 किमी दूर चित्रकूट की तहसील राजापुर है। दावा किया जाता है कि राजापुर में ही तुलसीदास का जन्म हुआ था। यमुना पर बना पुल पार कर मैं राजापुर में दाखिल हुआ, तो पहले नजर तुलसी चौक पर गई। चौक पर लगे लाउडस्पीकर पर रामचरितमानस की चौपाइयां पढ़ी जा रही हैं।

शहर के लोग बताते हैं- ‘पूरे राजापुर में लाउडस्पीकर लगे हैं। यहां हर समय रामचरितमानस का पाठ चलता रहता है। इससे किसी धर्म, किसी जाति के लोगों को कभी दिक्कत नहीं हुई।’

तुलसी चौक से करीब 500 मीटर चलने के बाद एक संकरा रास्ता आता है, यहां पंसारी और सब्जी मंडी है। गंदगी से पटे इस बाजार की एक गली में हम घुसते हैं। यही गली सभी को यमुना किनारे बने तुलसीदास के जन्मस्थल तक पहुंचाती है। सामने एक मंदिर है, भक्तों के लिए टीन शेड लगा है। पुजारियों का दावा है कि रामचरितमानस में इसी जगह को कालिंदी कहा गया है। इसके लिए वह एक चौपाई भी सुनाते हैं, जो इस तरह है:

पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर | श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धरयो शरीर ||”

अंदर मंदिर में सामने राम, सीता और लक्ष्मण और दाहिनी तरफ तुलसीदास की मूर्ति है। उसी के नीचे उनकी सदियों पुरानी चरण पादुका रखी है। मंदिर के पुजारी पंडित विष्णुकांत चतुर्वेदी बताते हैं- ‘यह मंदिर तुलसीदास के पैतृक मकान की जगह बना हुआ है। जब तुलसी ने जन्म लिया था, तब यहां मिट्टी से बना कच्चा मकान था। कमरे में तुलसीदास की प्रतिमा लगी है।’

मान्यता के मुताबिक, यही कमरा उनकी माता हुलसी देवी का प्रसव कक्ष था। यहीं उनकी नाल भी गड़ी है। तुलसी के सामने ही महादेव की प्रतिमा भी लगाई गई है। विष्णुकांत का दावा है कि यह प्रतिमा बनाई नहीं गई है। यह तुलसीदास की मृत्यु के बाद कालिंदी नदी से मिली है।

पंडित विष्णुकांत चतुर्वेदी आगे बताते हैं- ‘गोस्वामी की मृत्यु काशी में हुई। उनके सबसे पहले शिष्य गणपत राम दास जी महाराज थे, जिनकी हम 11वीं पीढ़ी हैं। गणपत रामदास जी महाराज तुलसीदास की लिखी रामचरितमानस और उनकी चरण पादुका के साथ राजापुर आ गए।

यहां जब लोगों को पता चला कि तुलसीदास नहीं रहे, तो सभी दुखी हो गए। तब तुलसीदास लोगों के सपने में आए और कहा कि मैं महादेव के साथ कालिंदी में पड़ा हूं। आप लोग खोज लीजिए। तब तुलसी और महादेव की यह मूर्तियां कालिंदी से निकलीं। तब से मूर्तियां यहां स्थापित हैं।’

तिजोरी में रखी है रामचरितमानस
मुख्य मंदिर के बगल में ही मानस मंदिर है। यहां के पुजारियों का दावा है कि तुलसीदास के हाथ से लिखी रामचरितमानस इनके पास मौजूद है। पुजारी रामआश्रय त्रिपाठी हमें एक कमरे में ले गए। दीवार में जड़ी एक तिजोरी को बड़ी-बड़ी चाबियों से खोलने लगे। तिजोरी खोलकर उन्होंने एक मेज पर 24 मखमली कपड़ों में लिपटी रामचरितमानस रख दी।

रामआश्रय कहते हैं- ‘आजकल बहुत कम लोग इसमें लिखे शब्दों को समझ पाएंगें। उस समय अकबर के दिए दस्तावेज भी तिजोरी में सुरक्षित रखे हैं। एक बार रामचरितमानस चोरी हो गई थी। हल्ला मचा तो चोर कालिंदी में फेंककर चला गया। जब निकाला गया तो सिर्फ अयोध्या कांड ही बचा था।’

इसके बाद यहां कई श्रद्धालु भी पहुंच गए, जिन्हें पंडित रामआश्रय त्रिपाठी रामचरितमानस दिखाने लगे।

श्रीरामचरित मानस मंदिर के प्रमुख 79 साल के पं. रामाश्रय त्रिपाठी बताते हैं- ‘मैं तुलसीदास जी की शिष्य परंपरा की 11वीं पीढ़ी का प्रमुख हूं। तुलसीदास के पहले शिष्य गणपतराम उपाध्याय थे। उनके परिवार के लोग ही इस मंदिर के प्रमुख हैं। यहां के 8वें प्रमुख मुन्नीलाल की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने बहन के बेटे ब्रह्मदत्त त्रिपाठी को गोद लिया और उन्हें मंदिर का प्रमुख नियुक्त किया। ​​​​​ब्रह्मदत्त त्रिपाठी की मृत्यु के बाद उनके बेटे रामाश्रय त्रिपाठी 15-16 साल की उम्र से ही इस मंदिर की देखभाल कर रहे हैं।’

मंदिर के बगल में दलित बस्ती, लोग बोले- हमें मंदिर जाने से कभी नहीं रोका गया
बातों-बातों में पता चला कि मंदिर के पास ही एक दलित बस्ती भी है। यहां के ज्यादातर लोग ठेला लगाने, सब्जी बेचने या मजदूरी जैसे काम करते हैं। रामचरितमानस विवाद से जुड़े सवाल लेकर मैं वहां पहुंचा, तो मेरी मुलाकात दिनेश चंद्र सोनकर से हुई। दिनेश फेरी लगाते हैं। उन्हें प्रधानमंत्री आवास भी मिला हुआ है।

विवाद पर सवाल करता हूं तो दिनेश जवाब देते हैं- ‘राजापुर तुलसीदास की जन्मस्थली है। हम लोग तो गर्व महसूस करते हैं कि हमने इस पवित्र धरती पर जन्म लिया है। नेता तो सिर्फ अपने फायदे के लिए भाषणबाजी करते हैं। रामचरितमानस हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। हमें कभी न तो मंदिर जाने से रोका गया, न ही हमें रामचरितमानस से कोई दिक्कत है। सुबह सबसे पहले कान में जो आवाज जाती है, वह रामचरितमानस की चौपाइयों की होती है।’

बातचीत सुनकर अनिल कुमार सोनकर आ गए। अनिल सब्जी की दुकान लगाते हैं। अनिल कहते हैं- ‘ सुबह उठते ही सबसे पहले तुलसीदास मंदिर जाता हूं। पूजा किए बिना दिन ही नहीं शुरू होता। कभी किसी ने नहीं कहा कि शूद्र हो, इसलिए मंदिर नहीं जा सकते।’

कासगंज का साेरों: यहां भी तुलसीदास के पैदा होने का दावा
सोरों, चित्रकूट से करीब 500 किमी दूर है। एक दावा है कि यहीं गोस्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ, यहीं उनका पैतृक गांव भी है। सोरों के पंडित हेमंत त्रिगुणायत बताते हैं- ‘सोरों वाराह भगवान की वजह से प्रसिद्ध है। गोस्वामी तुलसीदास का बचपन भी यहीं गुजरा। उनका गांव अब रामपुर श्यामपुर के नाम से जाना जाता है।’

पंडित हेमंत त्रिगुणायत से कहानी सुनकर मैं तुलसीदास की प्रतिमा के पास पहुंचा। यहां कुंड के बीच में तुलसीदास की प्रतिमा लगी है। यहां एक पुलिसवाले की तैनाती थी, मैंने सवाल किया तो जवाब मिला- ‘कुछ महीनों पहले किसी ने यहां तोड़फोड़ की थी, जिसके बाद पुलिस लगा दी गई।’

आधा किमी दूर दलित बस्ती, नाम ‘घटिया वार्ड’
इस प्रतिमा से भी सिर्फ 500 मीटर की दूरी पर दलित बस्ती है। हालांकि ये जानकर थोड़ा झटका लगा कि इस बस्ती का नाम ‘घटिया वार्ड’ है। इस नाम का इतिहास जानना चाहा तो कुछ नहीं मिला, लेकिन मन में सवाल यही था कि इसे बदला क्यों नहीं गया।

इस दलित बस्ती में घुसते ही सामने डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा दिखाई दी। प्रतिमा के पास ही सुरेश खड़े थे। सुरेश से विवाद पर सवाल किया तो बोले- ‘कहा तो जाता है कि यहां तुलसीदास का जन्म हुआ है। नेता ने क्या बयान दिया, मुझे मालूम नहीं है। हमें उससे कोई फर्क भी नहीं पड़ता है। हम तो अपने काम-धंधा में व्यस्त रहते हैं। कभी लगा नहीं कि रामचरितमानस में हमारे विरोध में कुछ लिखा है।’

सुरेश के बाद मेरी मुलाकात सुखपाल से हुई। सुखपाल भी स्कूल से रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं। बताते हैं- ‘मैं भी तुलसीदास के मंदिर में रोज जाता हूं। कभी ऐसी बात सामने नहीं आई कि हम दलितों का अपमान किया गया है। नेताओं का काम ही बोलना है, तो वह बोलते रहते हैं।’

इसी बीच पन्नालाल आ जाते हैं। वे मोहल्ले में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हैं। कहते हैं- ‘सोरों तुलसीदास की जन्मस्थली मानी जाती है। देशभर से लोग तीर्थ करने आते हैं, तो यहां के लोगों को फायदा मिलता है। हम तो बचपन से रामचरितमानस पढ़ते-सुनते आए हैं। हमें ऐसी कोई खामी नजर नहीं आई, लेकिन नेता कुछ बोल रहे हैं तो शायद कुछ होगा ही। कुछ आपत्ति है, तो उसे हटा देना चाहिए।’

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