पिता की मेहनत और बेटी की तपस्या का कमाल, पद्मश्री दीपिका कुमारी की प्रेरक कहानी

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  • संघर्ष की मिसाल: पिता ने कर्ज उठाकर बेटी को धनुष दिलाया, मेहनत और त्याग से बनाए सफलता के रास्ते।
  • मजदूरी से सपनों तक: बेटी के सपने पूरे करने के लिए दिन-रात मेहनत, पसीने की बूंदों से लिखी गई सफलता की कहानी।
  • स्वर्णिम सफर: कठिनाइयों को पार कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीते कई पदक।
  • देश का गौरव: तीरंदाजी में अभूतपूर्व योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित।
  • प्रेरणा की प्रतिमूर्ति: संघर्ष, समर्पण और सफलता की कहानी नई पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक।

उत्तराखंड में आयोजित 38वें राष्ट्रीय खेलों की तीरंदाजी प्रतियोगिता के फाइनल मुकाबले में बेटियों ने अपनी प्रतिभा का अद्भुत प्रदर्शन कर स्वर्ण और रजत पदक हासिल किए। इन पदकों के पीछे केवल उनकी कठोर तपस्या ही नहीं, बल्कि उनके पिता का अथक परिश्रम और समर्पण भी शामिल है।

कर्ज उठाकर बेटी को धनुष दिलाने से लेकर उनके सपनों को साकार करने के लिए दिन-रात मजदूरी करने की कहानियों ने इन तमगों की चमक को और अधिक आकर्षक बना दिया है।

दीपिका कुमारी और भजन कौर का शानदार प्रदर्शन
महिला रिकर्व व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली झारखंड की अर्जुन अवार्डी और पद्मश्री से सम्मानित तीरंदाज दीपिका कुमारी ने अपनी सफलता से देश का गौरव बढ़ाया। वहीं, हरियाणा की भजन कौर और पारस ने रिकर्व मिक्स टीम में रजत पदक पर निशाना साधा। राष्ट्रीय खेलों में इन खिलाड़ियों की सफलता उनके संघर्ष, परिश्रम और वर्षों के अभ्यास का परिणाम है।

संघर्ष की कहानी: आर्थिक तंगी के बावजूद आगे बढ़ीं बेटियां
हरियाणा की ओलंपियन भजन कौर बताती हैं कि उन्होंने 12 साल की उम्र से तीरंदाजी की शुरुआत की, लेकिन शुरुआती दौर में उन्हें प्रशिक्षक तक नहीं मिल सका। वहीं, कीर्ति जिन्होंने रिकर्व महिला टीम में कांस्य पदक जीता, बताती हैं कि उनके पिता विजय एक छोटे किसान हैं और मां गृहणी हैं। धनुष खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने करीब तीन लाख रुपये का लोन लेकर कीर्ति को रिकर्व दिलाया।

कीर्ति, जो स्नातक प्रथम वर्ष की छात्रा हैं, पिछले तीन वर्षों से तीरंदाजी कर रही हैं। उनका चयन बैंकॉक में होने वाले एशिया कप के लिए भी हुआ है, जो 16 फरवरी से शुरू होने वाला है। हालांकि, कीर्ति को इस बात का मलाल है कि अन्य प्रतिभागियों के पास आधुनिक और महंगे रिकर्व उपलब्ध हैं, जबकि उनके पास ऐसे उपकरण नहीं हैं।

भावना और अवनी की संघर्षगाथा
हरियाणा की कांस्य पदक विजेता भावना बताती हैं कि उन्होंने स्कूल में सात साल पहले छात्रों को तीरंदाजी करते देखा और तभी इस खेल में रुचि पैदा हुई। हालांकि, आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उपकरण खरीदना मुश्किल था। उनके परिजनों ने खेती से अर्जित आय से लोन लेकर उनके लिए रिकर्व खरीदा। भावना का कहना है कि यदि उन्हें और सहयोग मिला, तो वे देश और राज्य का नाम रोशन करेंगी।

इसी तरह, हरियाणा की अवनी ने भी अपनी बड़ी बहन को देखकर इस खेल की शुरुआत की और अब राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना रही हैं।

कक्षा नौ के छात्र माधव का शानदार प्रदर्शन
राष्ट्रीय खेलों की तीरंदाजी प्रतियोगिता में चार बार की ओलंपियन और इस राष्ट्रीय खेल में स्वर्ण पदक विजेता दीपिका कुमारी के साथ-साथ झारखंड के कक्षा नौ के छात्र 15 वर्षीय माधव भी अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं। यह उनकी पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता है, और उनका प्रदर्शन भविष्य के लिए उम्मीद जगाने वाला है।

सफलता के लिए समर्पण और अनुशासन जरूरी: दीपिका कुमारी
देश की शीर्ष तीरंदाज दीपिका कुमारी का मानना है कि सफलता के लिए समर्पण और अनुशासन आवश्यक है। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने खेलना शुरू किया था, तब आर्चरी को बहुत कम लोग जानते थे। पहले समझाना पड़ता था कि तीरंदाजी वही खेल है जो महाभारत में योद्धा किया करते थे। लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं और पिछले 12-14 वर्षों में इस खेल को लोग जानने लगे हैं।

खेलों के विकास के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं, और खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं देने की दिशा में सरकार और खेल संगठनों द्वारा भी काम किया जा रहा है। राष्ट्रीय खेलों में बेटियों की यह सफलता भविष्य के खिलाड़ियों को प्रेरित करेगी और देश में तीरंदाजी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में योगदान देगी।

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