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रामचरितमानस पर यूपी में राजनीति:मायावती बोलीं- शूद्र कहकर सपा हमारा अपमान न करे, 5 प्वाइंट्स में जानिए ये राजनीति क्यों हो रही

बसपा सुप्रीमो मायावती ने रामचरितमानस मामले पर सपा पर निशाना साधा है। मायावती ने लगातार एक के बाद एक चार ट्वीट किए हैं। उन्होंने सपा को दो जून 1995 की घटना याद दिलाई। कहा देश में कमजोर में उपेक्षित वर्गों का ग्रंथ रामचरितमानस व मनुस्मृति आदि नहीं बल्कि भारतीय संविधान है। जिसमें बाबा साहब ने इन्हें शूद्रों की नहीं बल्कि एससी, एसटी, ओबीसी की संज्ञा दी है। सपाई शूद्र कहकर उनका अपमान ना करें और ना ही संविधान की अवहेलना करें।

उन्होंने कहा, सपा प्रमुख को इनकी वकालत करने से पहले लखनऊ गेस्ट हाउस के दो जून 1995 की घटना को भी याद कर अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। देखना चाहिए कि जब सीएम बनने जा रही दलित की बेटी पर सपा सरकार ने जानलेवा हमला कराया था। वैसे भी यह जगजाहिर है कि देश में एससी, एसटी, ओबीसी, मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के आत्म सम्मान एवं स्वाभिमान की कदर बीएसपी में ही थी।

विपक्ष दलित वोटों के ध्रुवीकरण में लगा

यूपी की सियासत पिछले 12 दिन से रामचरितमानस की पंक्तियों पर गरमाई हुई है। विपक्ष दलित वोटों के ध्रुवीकरण के लिए सियासी तीर छोड़ रहा है। वहीं भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि इन्हें पहचान का संकट है, इसलिए रामचरितमानस की पंक्तियों का सहारा लिया जा रहा है।

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयान के बाद संतों ने भी नाराजगी का ऐलान किया है। ऐसे में सपा और भाजपा नेताओं की बयानबाजी को 2024 लोकसभा चुनाव से पहले कोर वोटर को अपनी ओर खींचने की कोशिश की तरह देखा जा रहा है।

1. सनातन बनाम जाति की राजनीति
उत्तर प्रदेश की राजनीति में सनातन धर्म सबसे बड़ी धूरी रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने हिंदू एकता को लेकर सनातन धर्म की बातें शुरू से करती आई है। कह सकते हैं कि इसकी मदद से भाजपा केंद्र की सत्ता में 2014 से स्थापित हो चुकी है। ऐसे में यूपी में रामचरितमानस की पंक्तियों को लेकर सनातन बनाम जाति की राजनीति शुरू हो चुकी है।

यह माना जा रहा है कि इस सियासी राजनीति के मायने सनातन धर्म में समाहित जातियों का ध्रुवीकरण करके तोड़ना है। वरिष्ठ पत्रकार प्रभा शंकर मानते हैं कि भाजपा, RSS के दिखाए रास्ते पर चलती है। RSS कभी जातिगत चर्चा नहीं करती है। ऐसे में मौजूदा समय की राजनीति में सनातन बनाम जातिगत राजनीति का समीकरण अगर सेट होता है। तब मौजूदा समय की पार्टी में सबसे ताकतवर भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

2. जातिगत आरक्षण पर जोर
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार रामचरितमानस की कुछ पंक्तियों को लेकर बयान जारी कर रहे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य का साफ कहना है कि इन पंक्तियों के माध्यम से 97% महिला, आदिवासी, दलित और वंचित समाज का अपमान किया जा रहा है। स्वामी प्रसाद ने यह भी कहा कि आरक्षण किसी भी कीमत पर खत्म नहीं किया जा सकता है।

रामचरितमानस से इन पंक्तियों को हटाया जाए। स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान का अखिलेश यादव ने भी समर्थन करते हुए कहा कि जातिगत जनगणना कराए जाने को लेकर उनको जिम्मेदारी दी गई है। तो दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के अन्य नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के इस बयान का दबी जुबान में समर्थन करते हुए नजर आ रहे हैं।

वरिष्ठ पत्रकार राकेश यादव मानते हैं कि जातिगत राजनीति से उत्तर प्रदेश अछूता नहीं है। ऐसे में जातिगत जनगणना को लेकर लगातार भाजपा के अलावा अन्य दल ही सक्रिय हैं। वह लगातार मांग कर रहे हैं कि जातिगत जनगणना कराई जाए। जिसके हक में जो भागीदारी होगी। उसके हिसाब से हिस्सेदारी दी जाए।

अगर जातिगत जनगणना होती है तो भारतीय जनता पार्टी यह समझ रही है कि उसको बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए जातीय जनगणना पर भारतीय जनता पार्टी खुलकर ना बोलती है और ना ही वह इस पर कोई चर्चा करना चाहती है।

3. जातियों का ध्रुवीकरण
उत्तर प्रदेश की सियासत में जातिगत राजनीति का बहुत ही बड़ा महत्व माना जाता है। 2014 में देश की सत्ता पर काबिज होने वाली भारतीय जनता पार्टी जातिगत राजनीति को धर्म और सनातन धर्म से जोड़कर हिंदू की बात करना शुरू किया। तीन दशक से यूपी में काबिज होने वाली सपा और बसपा को हटाकर भाजपा ने 2017 के रिकॉर्ड विजय हासिल किया था। केंद्र की सत्ता का रास्ता यूपी से जाने वाले लोकसभा चुनाव में फिर से धर्म और सनातन की राजनीति के बीच भाजपा को बड़ा फायदा हुआ।

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस मानते हैं कि यूपी की राजनीति में जातिगत समीकरण बहुत ही मायने रखते हैं। ऐसे में बसपा का मुख्य वोट माने जाने वाला दलित वर्ग भी भाजपा की तरफ जा चुका है। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी का यादव वोट बैंक माना जाता है और उसके साथ अन्य ओबीसी वर्ग की जातियां पहले वोट देती रही हैं। लेकिन भाजपा की राजनीति में दोनों दलों के मुख्य वोट बैंक में सेंधमारी कर चुनावी ध्रुवीकरण जरूर कमजोर किया है। मौजूदा समय में सनातन पर बयान और जातिगत जनगणना को लेकर जो मांग उठ रही है। इसमें वोट का ध्रुवीकरण किए जाने का सियासी प्रयास जरूर शुरू किया गया है।

4. बिहार से शुरुआत, यूपी में अब गरमाहट
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि रामचरितमानस पर सबसे पहला बयान बिहार सरकार के मंत्री ने दिया। बिहार की सियासत में आरजेडी और गठबंधन के मंत्री के बयान पर भाजपा लगातार हमलावर हो गई और वह माफी की बात को लेकर सड़क पर उतर गई। लेकिन सियासी तूफान बिहार की राजनीति से निकलकर यूपी में सक्रिय है।

मौजूदा समय में यूपी में भाजपा की सरकार है और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार रामचरितमानस की पंक्तियों को लेकर सीएम योगी से मांग कर रहे हैं कि जो पंक्तियां आपत्तिजनक हैं उन को हटाया जाए। यूपी की सियासत में रामचरितमानस को लेकर कई शहरों में प्रदर्शन और पंक्तियों को लिखकर जलाया भी गया। फिलहाल इस मामले में स्वामी प्रसाद मौर्य पर दो मुकदमे भी दर्ज हो चुके हैं।

राजनीतिक जानकार मानते हैं की जातिगत समीकरण की बात जितनी चर्चा में रहेगी उतना ही वोटों के ध्रुवीकरण पर असर आगामी 2024 के चुनाव पर देखने को मिल सकता है। इसलिए लगातार स्वामी प्रसाद मौर्य रामचरितमानस की पंक्तियों को लेकर बयान और अपनी मांग पर अड़े हुए हैं।

5. बसपा और भाजपा के वोट बैंक पर नजर
स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान के सियासी मायने यह हैं कि मौजूदा हालात में बसपा अपने वोट बैंक पर वह पकड़ नहीं बना पा रही है। जो कभी यूपी की सत्ता में सबसे मजबूत मानी जाती रही है। बीते 2012 के चुनाव के बाद से बहुजन समाज पार्टी यूपी की सियासत में कमजोर होती जा रही है। कमजोर होती बसपा का कोर वोट बैंक कहीं ना कहीं भारतीय जनता पार्टी की तरफ ट्रांसफर हो रहा है।

ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बयानों के जरिए बसपा के वोट बैंक को समाजवादी पार्टी की तरफ लाने का प्रयास जरूर कर रहे हैं। तो वहीं बसपा के विकल्प की तलाश में भाजपा से जुड़े वोट बैंक सपा की तरफ आए इस समीकरण पर भी प्रयास जारी है।

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