2025 में इस बार 60.45 प्रतिशत मतदान हुआ। इसके साथ ही दिल्ली के चुनावी रण में उतरे 699 प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में कैद हो गया है। अब आठ फरवरी को आने वाले नतीजों पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। दिल्ली के सभी 11 जिलों में उत्तर पूर्वी दिल्ली से सबसे अधिक 66 प्रतिशत मतदान हुआ।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार मतदान के प्रतिशत में गिरावट हुई और पिछले तीन चुनावों के मुकाबले इस बार सबसे कम मतदान हुआ। इसका कारण यह है कि पिछले तीन चुनावों जैसा इस बार मतदाताओं में उत्साह नहीं था।
मतदान प्रतिशत में गिरावट
दिल्ली विधानसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत में गिरावट का एक प्रमुख कारण है चुनावों के प्रति मतदाताओं की उदासीनता। आमतौर पर दिल्ली में उच्च मतदान प्रतिशत को देखा जाता है, लेकिन इस बार 2008 के बाद का सबसे कम वोट प्रतिशत देखने को मिला। 2008 में दिल्ली में कुल मतदान प्रतिशत 57.6% था, और इसके बाद लगातार मतदान प्रतिशत में वृद्धि हुई थी, लेकिन इस बार यह आंकड़ा 60.45% पर आकर ठहर गया।
इससे पहले 2013 में 66.2% मतदान हुआ था, जबकि 2015 में मतदान प्रतिशत बढ़कर 67.5% तक पहुंच गया था। 2020 के चुनावों में भी दिल्ली में मतदान प्रतिशत 62.59% था। 2025 के चुनावों में इस गिरावट को लेकर राजनीतिक दलों, चुनाव आयोग और नागरिक समाज के बीच चिंता जाहिर की जा रही है।
28 विधानसभा क्षेत्रों में 60% से कम मतदान
दिल्ली के 28 विधानसभा क्षेत्रों में 60% से कम मतदान दर्ज किया गया। ये क्षेत्र विशेष रूप से उन इलाकों में थे, जहां मतदाताओं का उत्साह अपेक्षाकृत कम था। इनमें से कुछ क्षेत्रों में तो मतदान प्रतिशत 50% से भी नीचे था। यह उन इलाकों में मतदाता जागरूकता की कमी और चुनावी प्रक्रिया से निराशा को दर्शाता है।
वहीं, कुछ क्षेत्रों में जातीय और धार्मिक आधार पर राजनीति की खासी छाया रही, जिससे मतदाता चुनावों में भाग लेने के लिए उत्साहित नहीं हो सके। इसके अलावा, कुछ इलाकों में मौसम और अन्य बाहरी कारकों के चलते भी मतदान में कमी आई। हालांकि, दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत अपेक्षाकृत ज्यादा रहा, जैसे कि मध्य और उत्तरी दिल्ली में।
मतदाता जागरूकता और राजनीति में घटता विश्वास
इस गिरते मतदान प्रतिशत का एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि दिल्ली के मतदाता अपने नेताओं और राजनीतिक दलों से निराश हो चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली की राजनीति में कई बड़े विवाद और आरोप-प्रत्यारोप हुए हैं। इससे लोगों का राजनीति से विश्वास कमजोर हुआ है। मतदाताओं की यह निराशा और राजनीति में घटता विश्वास भी चुनावों में भागीदारी को प्रभावित करता है।
इसके अलावा, कई लोग यह महसूस करते हैं कि चुनावों में उनका वोट डालने से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उनके चुनावी मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जाता। खासतौर पर शहरी क्षेत्रों में, जहां लोग रोजमर्रा की जिंदगी में समस्याओं से जूझते हैं, वहां चुनावों से पहले कोई ठोस योजना या समाधान नजर नहीं आता। इसका नतीजा यह है कि मतदाता मतदान केंद्रों पर पहुंचने के बजाय घरों में ही बैठने को प्राथमिकता देते हैं।
चुनाव प्रचार की भूमिका
इस चुनाव में चुनाव प्रचार की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। हालांकि प्रमुख राजनीतिक दलों ने जोर-शोर से प्रचार किया, लेकिन कुछ इलाकों में प्रचार के तरीके और रणनीतियों ने मतदाताओं को आकर्षित नहीं किया। भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे दलों के प्रचार में कुछ क्षेत्रों में उबाऊ और नकारात्मक राजनीति का प्रभाव देखा गया।
राजनीतिक प्रचार की भाषा और उनके मुद्दे लोगों की असल जरूरतों से जुड़ी नहीं थे, जिससे वोटरों का ध्यान भटका और मतदान प्रतिशत पर असर पड़ा। उदाहरण के तौर पर, अगर हम दिल्ली की ज़्यादातर युवा आबादी को देखें, तो उनकी प्राथमिकताएं रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, और महंगाई से संबंधित मुद्दों पर अधिक केंद्रित हैं, लेकिन चुनावी प्रचार ने इन मुद्दों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया। इस वजह से युवा मतदाताओं का उत्साह मतदान में कम रहा।
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया और आगामी सुधार
चुनाव आयोग ने इस गिरते मतदान प्रतिशत पर गहरी चिंता जाहिर की है। आयोग ने कहा है कि वह मतदाता जागरूकता बढ़ाने के लिए कई कदम उठाएगा। इसके लिए विशेष जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे, ताकि अगले चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ सके। चुनाव आयोग ने यह भी कहा है कि वे मतदान केंद्रों को और अधिक सुगम और आकर्षक बनाने के लिए कई सुधारों की योजना बना रहे हैं।
इसके साथ ही चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से भी यह आग्रह किया है कि वे चुनावों के दौरान सकारात्मक राजनीति को बढ़ावा दें और जनता के असल मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करें। यह प्रयास तब ही सफल हो सकता है जब सभी दल अपने चुनावी प्रचार में बदलाव लाएं और मतदाताओं के असली मुद्दों को प्राथमिकता दें।
क्या है 2008 के बाद सबसे कम वोटिंग प्रतिशत?
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2008 के बाद से सबसे कम मतदान प्रतिशत के रूप में रिकॉर्ड किया गया है। 2008 में मतदान प्रतिशत 57.6% था और यह वर्ष 2025 के चुनाव में 60.45% तक पहुंचा। हालांकि इसमें बढ़ोतरी हुई, लेकिन इस बढ़ोतरी की दर अपेक्षाकृत धीमी रही। 2008 के बाद से अब तक मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी का रुझान था, लेकिन 2025 में यह गिरावट को दर्शाता है।
इस आंकड़े को देखते हुए कहा जा सकता है कि दिल्ली के मतदाता अब चुनावी प्रक्रिया से थक चुके हैं, और एक ठोस परिवर्तन की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं। 2025 के चुनाव में इस प्रकार की कमी को सुधारने के लिए और अधिक प्रयास किए जाने चाहिए, ताकि आगामी चुनावों में दिल्ली के मतदाता फिर से सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभा सकें।
कुल मिलाकर, दिल्ली विधानसभा चुनाव में 60.45% वोटिंग प्रतिशत एक संकेत है कि दिल्ली में राजनीतिक प्रक्रिया से जुड़ाव में कमी आई है। इस गिरावट का असर उन 28 विधानसभा क्षेत्रों में अधिक महसूस हुआ जहां 60% से कम मतदान हुआ। इसका कारण मतदाता जागरूकता की कमी, राजनीतिक दलों से निराशा और चुनाव प्रचार की रणनीतियों का प्रभाव हो सकता है। चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों को इस पर गहरी सोचने की आवश्यकता है, ताकि अगले चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ सके और चुनावी प्रक्रिया में विश्वास स्थापित हो सके।