दुग्ध उत्पादों के लिए मशहूर जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले का एक छोटा सा गांव बडाल बीते एक महीने में 17 मौतों के कारण चर्चा में है। अभी 16 और मरीजों का इलाज विभिन्न अस्पतालों में चल रहा है। बडाल में जान गंवाने वालों में अधिकांश बच्चे हैं। इन सभी को अचानक तेज बुखार और सांस लेने में दिक्कत हुई। इसके बाद वे बेहोश हो गए और फिर उनकी जान चली गई।
इसके बाद से प्रशासन द्वारा कोविड काल की तरह गांव के बड़े हिस्से को बाहरी संपर्क से पूरी तरह काट दिया गया। प्रभावित घरों से खाने-पीने का सारा सामान निकाल दिया गया और लोगों को प्रशासन द्वारा मुहैया करवाई गई सामग्री ही खाने-पीने की अनुमति है। पाकिस्तान की सीमा से लगे इस गांव में इस तरह की मौतों ने कई आशंकाएं खड़ी की हैं।
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह का कहना है कि मरने वालों के शरीर में कैडमियम की भारी मात्रा पाई गई और मौत का कारण यही लगता है। वहीं पीजीआइ चंडीगढ़ की रिपोर्ट के अनुसार बीमार लोगों के शरीर में बहुत सी भारी धातुएं पाई गई हैं। इनकी मात्रा भी सामान्य से कई गुना ज्यादा मिली है।
विशेषज्ञों के अनुसार भारी धातुएं जहर जैसा काम करती हैं। मरीजों के खून के नमूनों को केंद्रीय फारेंसिक साइंस लैबोरेटरी, डीआरडीओ ग्वालियर एवं अन्य प्रतिष्ठित प्रयोगशालाओं को भी भेजा गया है। वहां से रिपोर्ट मिलने पर ही बीमारी का असली कारण पता चल सकेगा।
फिलहाल इतना स्पष्ट है कि बडाल में मरने वालों के शरीर में किसी किस्म का जहर नहीं पाया गया। जिस तरह बीमारी फैली, उससे यही संकेत मिलता है कि कैडमियम या अन्य भारी धातु की बड़ी मात्रा किसी तरह खाद्य शृंखला में आई। बडाल गांव हिमालय की पीर पंजाल पर्वत शृंखला की गोद में है। यहां से बहुत सी जल धाराएं बहती हैं। चिनाब की सहायक नदी आंसी बडाल से होकर गुजरती है। संभव है कि पानी के माध्यम से कैडमियम या अन्य कोई यह भारी धातु लोगों के शरीर में पहुंची हो।
बडाल और उसके आसपास बहुत सी नदियां और झरने हैं। यहां कई तालाब भी हैं। बड़ी आबादी पानी के लिए इन्हीं जल स्रोतों पर निर्भर है। चूंकि इस इलाके में कोयला, चूना, बाक्साइट, लौह और बेंटोनाइट जैसे अयस्क मिलते हैं, इसके चलते अवैध खनन बड़ी समस्या है। ऐसे में खनन अवशेषों के जल धाराओं में मिलने से उसमें भारी धातु की मात्रा बढ़ने की आशंका है।
ऐसे मामले पहले मेघालय में भी देखे गए हैं। कुछ साल पहले वहां अवैध कोयला खनन के अवशेषों के चलते नदी का पानी नीला हो गया था। इससे तमाम जलचर मारे गए थे। 1912 के आसपास जापान में तोयामा बेसिन की जीनजू नदी के किनारे रहने वाले लोगों के शरीर के जोड़ों में भयानक पीड़ा और सांस की दिक्कतें शुरू होने से कई मौतें हुई थीं।
जब इन मामलों की जांच की गई तो पता चला कि नदी के किनारों पर भारी खनन के कारण उसके पानी में कैडमियम की मात्रा बढ़ने से यह समस्या पैदा हुई थी। नदी के पानी का सेवन और खेती में उपयोग से धान और सब्जियों में कैडमियम की मात्रा खतरनाक स्तर तक बढ़ गई थी। बडाल के भौगोलिक हालात और मरीजों की स्थिति जीनजू नदी के किनारे बसे लोगों से मिलती-जुलती है। इस पहलू को भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।
इन दिनों भारी धातु विषाक्तता और उनका जैव-संचय कुछ ऐसी उभरती वैश्विक चिंताएं हैं, जो पौधों, जानवरों और मनुष्यों सहित विभिन्न जीवन रूपों को प्रभावित करती हैं। अधिकांश विकसित और विकासशील देशों में उद्योगीकरण, शहरीकरण, कृषि विधियां आदि कथित विकास गतिविधियों के चलते भूमि और पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा है।
कैडमियम विषाक्तता चीन, बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में एक प्रमुख मुद्दा है। पारिस्थितिकी तंत्र में कैडमियम की सीमा से अधिक मात्रा मिट्टी, पानी और हवा के माध्यम से मानवीय खाद्य शृंखला में प्रवेश कर सकती है। यह मानव शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है। वैसे कैडमियम प्राकृतिक रूप से मिट्टी में मौजूद होता है, लेकिन अंधाधुंध कृषि और खनन जैसी गतिविधियों से इसका स्तर बढ़कर खतरनाक हो सकता है।
पौधे अपनी जड़ों के माध्यम से कैडमियम को अवशोषित करते हैं और वह पत्तेदार सब्जियों, अनाज, जड़ वाली फसलों और अनाजों में जमा होता है। कई बार मवेशी कैडमियम युक्त पौधे खाते हैं, जो उनके शरीर में जमा हो जाता है। फिर उनके दूध या फिर मांस के जरिये वह इंसान के शरीर में पहुंच जाता है। पानी में यह तेजी से घुलता है और इसी तरह हवा में भी। कैडमियम सबसे पहले गुर्दों, विशेष रूप से गुर्दे की नलिकाओं को प्रभावित करता है और मूत्र विसर्जन को बढ़ाता है। इससे कमजोरी होती है और लीवर को नुकसान पहुंचता है।
राजौरी के गांव में जिस तरह मरीजों के अंग काम करना बंद कर रहे और फिर उनके फेफड़े जवाब दे रहे हैं, उससे कैडमियम की आशंका को ही बल मिल रहा है। बहुत से लोगों को एक आशंका यह भी है कि कहीं सीमा पार से या किसी देश विरोधी तत्व ने रासायनिक आतंकवाद का कोई प्रयोग न किया हो। केंद्र और राज्य सरकार के कई दल वहां जांच-पड़ताल कर रहे हैं। उनकी जांच की प्रतीक्षा है। फिलहाल शासन-प्रशासन के सामने चुनौती बीमारी के कारणों को पहचानने और नियंत्रण की है।