Tuesday, April 30, 2024

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सेकुलर नेता के मन में क्यों बसा मुस्लिम मतदाता?

भारत में अपने आपको सेकुलर कहनेवाले नेताओं के मन में हमेशा से मुस्लिम मतदाता रहा है। इस बार भी उसका पूरा फोकस उसी ओर है। राहुल गांधी हों, तेजस्वी यादव हों, अखिलेश यादव या फिर ममता बनर्जी। सेकुलर पॉलिटिक्स का दावा करनेवाले ये सभी नेता खुलकर मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर लुभाने में लगे हैं।

मसलन, नवरात्र में जब मांसाहारी हिन्दू भी मांस मछली से दूर रहता है तब तेजस्वी यादव हेलिकॉप्टर में उड़ते हुए मछली खाते हुए दिखाई दिए। उनका संदेश साफ है। मुस्लिम वोटों के लिए हिन्दू व्रत त्यौहार कोई मायने नहीं रखते। वो नवरात्र में मछली और सावन में मटन खा सकते हैं।

इन नेताओं के जो समर्थक पत्रकार या कम्युनिस्ट बुद्धिजीवी हैं उनके लिए तो जैसे मौका ही मिल गया। एक बड़े चैनल के सेकुलर ब्राह्मण पत्रकार चेन्नई पहुंचे तो मरीना बीच पर एक मछली की दुकान पर चले गये। उन्होंने मछली, झींगा सबकी खासियत बताई और इशारों-इशारों में यह भी समझाया कि तेजस्वी यादव और मैं नवरात्र में मांस मछली खा रहा हूं, आप भी खाइये। यहां चेन्नई के डीएमके राज में भी सब खा रहे हैं।

इसी तरह ईद के दिन ममता बनर्जी ने एक बार फिर ऐलान किया कि वो पश्चिम बंगाल में सीएए लागू नहीं करेंगी। मतलब बांग्लादेश और पाकिस्तान से मुसलमानों का सताया हुआ कोई हिन्दू पश्चिम बंगाल पहुंचता है तो उसे वहां नागरिकता नहीं दी जाएगी। स्वाभाविक है उन्हें पाकिस्तान में सताये हुए हिन्दुओं से अधिक उन्हें सतानेवाले मुसलमानों की चिंता है। उन्हें सत्ता में बने रहने के लिए 28 प्रतिशत मुसलमानों का एकमुश्त वोट चाहिए तो उन्हें हर हाल में खुश रखना होगा।

असल में देश में मुस्लिम जनसंख्या अभी भले ही 14 प्रतिशत हो लेकिन देश की 92 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता 20 प्रतिशत या इससे अधिक हैं। इसमें 16 सीटें तो ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता 50 प्रतिशत से अधिक हैं। 11 सीटें ऐसी हैं जहां 40 से 50 प्रतिशत के बीच मुस्लिम मतदाता है, जबकि 24 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता 31 से 40 प्रतिशत के बीच है। 41 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता 21 से 30 प्रतिशत हैं। इस तरह 92 सीटों पर मुस्लिम मतदाता अपने वोट के रसूख के बल पर राजनीतिक दलों को अपने एजंडे पर चलने के लिए मजबूर करते हैं।

लेकिन यहां यह भी समझने लायक बात है कि जहां मुस्लिम मतदाता 40 प्रतिशत से अधिक हैं वहां उनकी आपसी तकरार भी है। इन मुस्लिम मतदाताओं की नुमाइंदगी कौन करेगा, इसको लेकर उनके बीच भी खींचतान है। मुस्लिम मतदाता वहां अधिक प्रभावी है जहां वह 40 प्रतिशत से कम और 10 प्रतिशत से अधिक हैं। ऐसी स्थिति में वह एकजुट होकर वोट करता है और किसी भी उम्मीदवार की जीत हार में निर्णायक भूमिका निभाता है।

इसलिए भारत में मुस्लिम हितैषी सेकुलर राजनीति करनेवाले दलों और नेताओं की हमेशा कोशिश रहती है कि वो मुसलमानों को किसी भी तरह से अपने पाले में खींचकर ले आएं। आरएसएस से जुड़े होने के कारण भाजपा हमेशा मुसलमानों के निशाने पर रहती है। इसलिए गैर भाजपा दल कोशिश करते हैं कि भाजपा की जीत का डर दिखाकर वह मुस्लिम मतदाताओं को एकमुश्त अपनी ओर मोड़ ले। इसके लिए उन्हें जो झूठ बोलना पड़े, बोलते हैं। अगर हिन्दुओं को नीचा दिखाकर वो मुसलमानों को खुश कर सकते हैं तो वो उसका भी मौका नहीं छोड़ते हैं। इसका कारण सिर्फ इतना है कि हर सेकुलर नेता के मन में मुस्लिम वोटर बसा हुआ है।

भाजपा के डर और अपने वोटबैंक की राजनीति के कारण मुस्लिम समुदाय कई सारे मसलों पर तो फायदे में रहता है लेकिन जैसे जैसे भाजपा मजबूत हुई है, मुसलमानों के जनप्रतिनिधित्व में कमी आयी है। भारत के राजनैतिक इतिहास को देखें तो जब तक मुसलमान भाजपा को हराने की रेस में नहीं पड़ा था, वह फायदे में था। 1980 में जब भारतीय जनता पार्टी का गठन हो रहा था उस साल संसद में 49 मुस्लिम सांसद चुनकर आये थे। लेकिन भाजपा के गठन के बाद जैसे जैसे हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण हुआ है, मुस्लिम नुमाइंदगी में लगातार कमी आयी है।

2014 में मोदी की प्रचंड जीत के समय सिर्फ 23 मुस्लिम सांसद चुनकर लोकसभा पहुंचे थे। इसके बाद 2019 में इनकी संख्या 27 तक पहुंची। इसमें भाजपा के 282 और 303 में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं था। जिन राजनीतिक दलों ने मुस्लिम वोटबैंक पर दांव लगाया वो घाटे में रहे। मुस्लिम तुष्टीकरण के कारण हिन्दुओं का जो ध्रुवीकरण हुआ उसका नुकसान सिर्फ कांग्रेस या मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करनेवाले दूसरे सेकुलर दलों को ही नहीं हुआ बल्कि मुस्लिम नुमाइंदगी में भी कमी आयी।

ये कथित सेकुलर नेता मुसलमानों को भले ही कितना भी भाजपा का डर दिखायें लेकिन मुस्लिम मतदाताओं ने एकदम से कभी भाजपा का बहिष्कार भी नहीं किया है। बीते चालीस सालों में 3 से 7 प्रतिशत तक मुस्लिम मतदाता भाजपा को वोट करते रहे हैं। इसमें मुख्य रुप से शिया मतदाता रहे हैं जो सुन्नियों के साथ जाने में अपने आपको असुरक्षित महसूस करते हैं।

लेकिन 2019 के चुनाव के बाद बीजेपी ने अपनी मुस्लिम नीति में बदलाव किया है। सुन्नी मुसलमानों को अपने साथ लाने के लिए पसमांदा मुसलमानों पर फोकस किया है। ये पसमांदा या पिछड़े हुए मुसलमान वो हैं जो जाति व्यवस्था में मुसलमानों के बीच ही अछूत समझे जाते हैं। देखना यह होगा कि 2024 में ये ‘अछूत मुसलमान’ भाजपा का कितना साथ देते हैं।

इसके बावजूद भाजपा मुसलमानों को खुश करनेवाली राजनीति से बच रही है। भाजपा को पता है कि अगर उसने ऐसा किया तो उसका कोर हिन्दू वोट उससे नाराज हो जाएगा। भाजपा मुसलमानों से तो वैसा भेदभाव नहीं कर रही जैसा सेकुलर दल हिन्दुओं से करते हैं लेकिन अपनी सेकुलर छवि बनाने से भी बच रही है।

बहरहाल, मोदी के उभार के कारण रमजान के महीने में सेकुलर नेताओं द्वारा जिस प्रकार से इफ्तारी वाली राजनीति होती थी, फिलहाल वह खत्म सी हो गयी है। उसके विकल्प के रूप में ही संभवत: नवरात्र में मछली खाने या सावन में मटन पकाने का चलन शुरु किया गया है ताकि मुस्लिम मतदाताओं तक यह संदेश पहुंच जाए कि वो खुलकर इफ्तारी भले न खा पा रहे हों लेकिन नवरात्र में मांस मटन मछली खा रहे हैं जो एक प्रकार से हिन्दू मान्यताओं को ही ठेस पहुंचानेवाला है। इतना करने से अगर मुस्लिम मतदाता खुश हो जाते हैं और उन्हें अपने जैसा ही मानते हैं तो राहुल, तेजस्वी, अखिलेश यादव का जाता क्या है?

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